SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 817
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कन्नड़ जैन साहित्य डॉ. एस. वी. सुजाता कन्नड़ भाषा का उज्वल इतिहास 2000 साल प्राचीन है। आज उसे शास्त्रीय भाषा की मान्यता प्राप्त हुई है। कन्नड़ भाषा दक्षिण भारत में प्रचलित द्राविड़ भाषा परिवार की एक प्राचीन व शिष्ट भाषा है। इसका प्राचीनतम लिखित रूप 450 ई. के शिलालेख में उपलब्ध है। कन्नड़ में लिखित वाङ्मय लगभग 6 सदी से आरम्भ हुआ है और आज तक अविरत धारा रूप में प्रवाहित चली आ रही है। ___कन्नड़ भाषा के प्रयोग में समय-समय पर परिवर्तन होता आ रहा है। भाषाविदों ने उसे विविध चरणों में विभाजित किया है। हळगन्नड़ (पुराना कन्नड़) 6 से 10 वीं सदी तक, नगन्नड़ (मध्यकालीन) 11 से 15वीं सदी तक और 16वीं सदी से होसगन्नड़ (नया), 20वीं सदी में आधुनिक कन्नड़ (प्रस्तुत) लिपि ने ब्राह्मी लिपि से उद्गम होकर कई परिवर्तनों के बाद प्रस्तुत रूप धारण किया है। ___ कन्नड़ साहित्य का उद्गम ही जैन कवियों द्वारा हुआ है। जैन आचार्यों ने धर्म प्रसारण हेतु जहाँ-जहाँ बिहार किया वहाँ की देशी भाषाओं को अपनाया। जैन कवियों ने भी जैन तत्त्व, शास्त्र, महापुरुषों के चरित और अन्य विचारों पर सरस काव्यों और कृतियों की रचनाएँ की हैं। कन्नड़ वाङ्मय मन्दिर में अन्दर और बाहर के बहुतेक अमूल्य व आकर्षक प्रतिमाएँ जैन कृतियाँ ही हैं। प्रौढ़ छन्द चम्पू (गद्य-पद्य मिश्रित) से लेकर, गद्य और षट्पदी (6 पंक्तियों का छन्द), सांगत्य (4 पंक्तियों का छन्द) जैसे वर्णक (गायन योग्य और सुदीर्घ रचना के लिए प्रयोग किये जाने वाले) छन्द, आधुनिक समय में सरल गद्य, पद्य आदि साहित्यिक प्रकारों में जैन साहित्य की रचना होती आ रही है। जैन साहित्य के इतिहास में मुनियों, श्रावक, कवियों के अलावा महिलाओं और अजैन विद्वानों का योगदान उल्लेखनीय है। इस समृद्ध परम्परा की एक लेख में समीक्षा करना असम्भव है। तथापि विषय-वस्तु और साहित्यिक प्रकार के आधार पर कन्नड़ जैन साहित्य का स्थूल रूप से परिचय करने का प्रयास यहाँ किया गया है। कन्नड़ में उपलब्ध प्रथम ग्रन्थ 'कविराजमार्ग' है। 9वीं सदी में रचित इस ग्रन्थ का 808 :: जैनधर्म परिचय For Private And Personal Use Only
SR No.020865
Book TitleJain Dharm Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2012
Total Pages876
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy