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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir महाकाव्य (आचार्य ज्ञानसागर जी); श्रमण शतकम्, निरञ्जन शतकम्, भावनाशतकम्, परिषहजय शतकम्, सुनीति शतकम् आदि शतक (आचार्य विद्यासागर जी); वादोपनिषद्, शिक्षोपनिषद्, सत्त्वोपनिषद् ,ऋषिभाषित सूत्रम्, हिंसाष्टकम्, कर्मसिद्धि, धर्मोपनिषद् आदि (आचार्य विजय हेमचन्द्रसूरि के शिष्य आचार्य विजय कल्याण बोधि सूरीश्वर; मणिभद्र महाकाव्यं, संवेगरतिः, स्मृति मंदिर प्रशस्ति काव्य, शुभाभिलाषा (मुनि प्रशमरति महाराज) इस प्रकार देश के प्रत्येक कोने में और प्रत्येक क्षेत्र की लोकभाषा में जैन आचार्यों व विद्वानों ने विपुल साहित्य की रचना की, जिससे वहाँ संस्कृत का प्रचार और सांस्कृतिक एकता का सूत्रपात हुआ। भारतीय साहित्य और संस्कृति के अखण्ड, अविच्छिन्न प्रवाह और विकास व उसकी समस्त भिन्न-भिन्न धाराओं और उसके मूल स्रोत की एकता को समझकर भारतवर्ष की अखण्ड राष्ट्रीयता व संस्कृति की अनुभूति के लिए साहित्य के इस अक्षय-अपार भण्डार का व्यवस्थित अध्ययन न केवल आवश्यक, बल्कि सर्वथा अनिवार्य है। इसके बिना आज के स्वतन्त्र राष्ट्र, उसकी संस्कृति और अनेकविधि भाषाओं में हम उसकी वास्तविक एकता और अखण्डता के दर्शन नहीं कर सकते। जैन संस्कृत साहित्य के अध्ययन से हमें इस देश की लोकसंस्कृति के विविध रूपों का परिचय प्राप्त होता है। तत्कालीन सामाजिक, दार्शनिक, राजनीतिक व आर्थिक आदि स्थितियों का विशद चित्र हमारी आँखों के सामने स्पष्ट हो जाता है और अनेक ऐतिहासिक तथ्यों का भी उद्घाटन होता है। अनेक विद्वानों ने जैन संस्कृत साहित्य के आधार पर सांस्कृतिक स्वरूप का चित्र प्रस्तुत करने का प्रयास भी किया है। इस प्रकार जैन साहित्य-परम्परा सृजनात्मकता की दृष्टि से तो समृद्ध है ही, साहित्यिक व सांस्कृतिक इतिहास को जानने की दृष्टि से भी उपादेयता रखती है। प्रमुख आधार-ग्रन्थ 1. जैन साहित्य का वृहद् इतिहास (भाग-1-6), प्रकाशक; पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान, वाराणसी। 2. संस्कृत काव्य के विकास में जैन कवियों का योगदान (डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री), प्रकाशक: भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली। 3. जैन धर्म के प्रभावक आचार्य (साध्वी संघमित्रा), प्रकाशक: जैन विश्वभारती प्रकाशन, लाडनूं। 4. भारतीय संस्कृति में जैन धर्म का योगदान (डॉ. हीरालाल जैन), प्रकाशक: मध्यप्रदेश शासन साहित्य परिषद्, भोपाल। 5. जैन न्याय का विकास (मुनि नथमल), प्रकाशक: जैन विद्या अनुशीलन केन्द्र, राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर। 6. जैन न्याय (पं. कैलाशचन्द्र शास्त्री), प्रकाशक: भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली। संस्कृत साहित्य-परम्परा :: 807 For Private And Personal Use Only
SR No.020865
Book TitleJain Dharm Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2012
Total Pages876
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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