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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सिंगापोर में जैनधर्म प्रीति शाह आज से लगभग सौ साल पहले कुछ जैन बन्धु भारत से अपने आर्थिक विकास के लिए पहली बार सिंगापोर आये। दक्षिण पूर्वी एशिया में व्यापार को विकसित करने के लिए सिंगापोर एक महत्त्वपूर्ण शहर माना जाता था। अपने देश और परिवार से दूर होने के बावजूद अपने धर्म और संस्कृति के दायरे में रहना, इन सब के लिए जरूरी था। सिंगापोर में छोटा-सा ही सही, यदि एक जैन समाज की स्थापना हो जाय तो इस देश में अपने परिवार के साथ रहना आसान हो जाय, इस ख्याल ने जैन भाइयों के दिमाग में घर कर लिया था। 1921 के पर्युषण पर्व का आरम्भ हो चुका था। संवत्सरी प्रतिक्रमण तो साथ ही करना होगा, ऐसी कुछ भावना लेकर लगभग 10-12 जैनबन्धु श्री गोविन्द भाई शाह के घर इकट्ठे हुए, और फिर तो यह जैसे सिलसिला बन गया, पर्युषण पर्व, आयम्बिल ओली, महावीर जयन्ती-ये सभी त्योहार गिने-चुने जैन बन्धु साथ-साथ मनाने लगे। यूँ कहिये तो जैन समाज की एक अनौपचारिक शुरुआत हो चुकी थी। दूसरे विश्व युद्ध के सम्पन्न होने पर भारत से जैन बन्धु अपने परिवार समेत सिंगापोर आने लगे। सन् 1947 की महावीर जयन्ती के दिन लगभग 60-70 जैन बन्धु एक जगह जमा हुए और तब पहली बार समाज की गतिविधियों को चलाने के लिए चन्दा इकट्ठा किया गया। ___ 1960 तक समाज में सदस्यों की संख्या लगभग सौ तक पहुँच गयी थी । जैन बन्धु पर्व मनाने के लिए कभी आर्य समाज तो कभी बौद्ध मन्दिर में मिलने लगे थे। अपने धर्म को सामूहिक रूप से मनाने के लिए एक सुनिश्चित स्थान की कमी सभी जैन बन्धुओं को खल रही थी। __1970 के वर्ष तक इस महत्त्वाकांक्षा ने सब के मन में घर कर लिया था। एक साल की कड़ी महेनत के बाद, नयी पीढ़ी के जुनून और पुरानी पीढ़ी के मार्गदर्शन में इस समाज ने करीब 59,000/- डॉलर जमा कर लिये थे। इस महत्त्वाकांक्षा के फलस्वरूप 18 जालान यासीन, सिंगापोरे पर 'सिंगापोर जैन सोसाइटी' का ध्वज लहराया गया। वह उस समय एक कच्ची इमारत और उस तक पहुँचता एक कच्चा रास्ता ही था। किन्तु जैन बन्धुओं के हौसले बुलन्द थे। सब बुजुर्गों की कड़ी मेहनत के पश्चात् सन् 1978 में दौ सिंगापोर में जैनधर्म :: 749 For Private And Personal Use Only
SR No.020865
Book TitleJain Dharm Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2012
Total Pages876
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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