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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir युद्ध, अपराध, अशान्ति, आक्रोश का चित्रण करती हुई कोई भी पेंटिंग न लगाएँ तथा पलंग के सम्मुख दर्पण न लगाएँ, क्योंकि दर्पण शरीर की सभी ऊर्जाओं को परावर्तित कर देता है। शयन-कक्ष में कभी वृक्ष की छाया नहीं पड़नी चाहिए, अन्यथा शयन करने वालों को साइटिका, ऑर्थराइटिस तथा स्लिप-डिस्क होने की सम्भावना रहती है और यदि पलंग के पीछे खिड़की या दरवाजे हों अथवा ए.सी. या कूलर हों, तो कमरदर्द बना रहता है। ___ गृहस्वामी के शयनकक्ष के अलावा बच्चों का अध्ययन-कक्ष पूर्व, ईशान अथवा उत्तर दिशा में बनाना चाहिए तथा गेस्टरूम वायव्य (NW) में होना चाहिए और छोटे भाई-बहनों का कक्ष दक्षिण या पश्चिम दिशा में होना चाहिए। ___ वास्तु व स्वास्थ्य – सूर्य की किरणें मानव-जीवन पर सीधा प्रभाव डालती हैं। सूर्योदय के समय अल्ट्रावॉयलेट और इन्फ्रारेड किरणों का हमारी त्वचा, भोजन और रसोईघर, शयन-कक्ष, आराधना-कक्ष की आन्तरिक व्यवस्था पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। सुबह के समय मधुमेह के रोगियों को घूमने की सलाह इसलिए दी जाती है, क्योंकि सुबह सूर्य की किरणों में विटामिन डी की प्रचुर मात्रा रहती है। आग्नेय (SE) दिशा में तैयार रसोई से कीड़े फफूंद, जीवाणु आदि के उत्पन्न होने, ठहरने की सम्भावना बाकी दिशाओं की तुलना में काफी-कम रहती है। इसके विपरीत दोपहर के समय निकलने वाली कास्मिक किरणें इस हद तक दुष्प्रभाव डालती हैं कि महिलाओं में होने वाले स्तन कैंसर और स्किन कैंसर जैसे असाध्य रोगों का कारण बनती हैं, क्योंकि दोपहर के समय इन किरणों की तीव्रता में बदलाव आ जाता है। उच्च शक्तिशाली विद्युत लाईन (High Tension Line) के नीचे निवास, व्यापार, विद्यालय रहने से निवासकर्ता को कैंसर रोग होने की सम्भावना बढ़ सकती है, सीढ़ी के नीचे शौचालय, जनरेटर आदि की व्यवस्था न करें, अन्यथा भूखंड का सन्तुलन बिगड़ जाएगा। घर की नाली चोक रहने से अनेक असाध्य रोगों की उत्पत्ति होती है। भूमि में यदि पानी का बहाव गलत दिशा में हो अथवा पानी की टंकी से लगातार पानी बहता हो, तो दमा, टीबी- जैसा रोग होने की सम्भावना रहती है। भूमि का वायव्य कोण कटा हुआ हो, तो ब्लडप्रेशर, सर्दी-जुकाम, मूत्र विकार हो सकता है। भूखंड में नैऋत्य द्वार हो, तो गृह-स्वामी लम्बी बीमारी का शिकार हो सकता है, परन्तु यदि दक्षिण भाग में कुआँ हो, तो गृह स्वामी बीमार बना रहेगा। हर व्यक्ति के लिए उसके शरीर व मन के आधार पर हर दिशा सही नहीं होती है। उस व्यक्ति विशेष को पूर्ण रूप से समझ लेने के बाद ही उसके लिए उपयुक्त दिशा का निर्धारण किया जा सकता है और इसके लिए जरूरी है कि उस व्यक्ति की वास्तु :: 733 For Private And Personal Use Only
SR No.020865
Book TitleJain Dharm Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2012
Total Pages876
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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