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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir क्रमश: पंच रंग का होता है। यथा "स्फटिकश्वेत-रक्तं च पीत-श्याम-निभं तथा। एतत्पंचपरमेष्ठी पंचवर्ण-यथाक्रमम्॥" मानसार, 55/44 स्फटिक के समान श्वेत, लाल, पीत, श्याम (हरा) और नीला (काला) -ये पाँच वर्ण क्रमश: पंचपरमेष्ठी के सूचक हैं। ___ पंचवर्ण में समवसरण- जैन तीर्थंकरों की प्रवचन सभा को समवसरण कहते हैं। यहाँ पर तीन गतियों (देव, मनुष्य व तिर्यंच) के भव्य जीवों को भेदभाव रहित समान शरण मिलती है। यह बारह सभाओं में विभाजित तथा पंचवर्ण का होता है। यथा'पंचवण्ण-रयणहिं समूहहिं सुविचित सहमंडवहिं' महाकवि बुध श्रीधर, पासणाहचरिउ, संधि 8/8/140 अर्थात् पंचवर्ण के रत्न समूहों से सुविचित्र सभामंडप। पंचवर्ण में जैनशासन ध्वज- यह ध्वज आकार में आयताकार है तथा इसकी लम्बाई व चौड़ाई का अनुपात 3-2 है। इस ध्वज में पाँच रंग हैं- लाल, पीला, सफेद, हरा और नीला (काला)। लाल, पीले, हरे, नीले रंग की पट्टियाँ चौड़ाई में समान हैं तथा सफेद रंग की पट्टी अन्य रंगों की पट्टी से चौड़ाई में दुगुनी होती है। ध्वज के बीच में जो स्वस्तिक है, उसका रंग केसरिया है। जैन समाज के इस सर्वमान्य ध्वज में पाँच रंगों को अपनाया गया है जो पंच-परमेष्ठी के प्रतीक हैं। ध्वज में श्वेत रंग-अर्हन्त परमेष्ठी (घातिया कर्म का नाश करने पर शुद्ध निर्मलता का प्रतीक)। लाल रंग-सिद्ध परमेष्ठी (अघातिया कर्म की निर्जरा का प्रतीक)। पीला रंग-आचार्य परमेष्ठी (शिष्यों के प्रति वात्सल्य का प्रतीक)। हरा रंग-उपाध्याय परमेष्ठी (प्रेमविश्वास-आप्तता का प्रतीक)। नीला रंग-साधु परमेष्ठी (साधना में लीन होने का और मुक्ति की ओर कदम बढ़ाने का प्रतीक)।-ये पाँच रंग, पंच अणुव्रत एवं पंच महाव्रतों के प्रतीक रूप में भी सफेद रंग अहिंसा, लाल रंग सत्य, पीला रंग अचौर्य, हरा रंग ब्रह्मचर्य, नीला रंग अपरिग्रह का द्योतक माना जाता है। ध्वज के मध्य में स्वस्तिक को अपनाया गया है, जो चतुर्गति का प्रतीक है। 'पंचवण्णा पवित्ता विचित्ता धया' पुष्पदन्त महाकवि, महापुराण, 24-12-2, पृष्ठ 122 पंचरंगी पवित्र विचित्र ध्वज है। 'विजयापंचवर्णाभा पंचवर्णमिदं ध्वजम्' प्रतिष्ठातिलक, 5-10 एवं आशाधरसूरि, प्रतिष्ठासारोद्धार, 3-209 682 :: जैनधर्म परिचय For Private And Personal Use Only
SR No.020865
Book TitleJain Dharm Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2012
Total Pages876
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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