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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हे देवि, सुन, हाथी के देखने से 200BALASH तेरे उत्तम पुत्र होगा, उत्तम बैल देखने से वह समस्त लोक में ज्येष्ठ होगा। सिंह के देखने से वह अनन्त बल से युक्त होगा, मालाओं के देखने से समीचीन धर्म के तीर्थ (आम्नाय) का चलानेवाला होगा, लक्ष्मी के देखने से वह सुमेरु पर्वत के मस्तक पर देवों के द्वारा अभिषेक को प्राप्त होगा। पूर्ण चन्द्रमा के देखने से समस्त लोगों को आनन्द देनेवाला होगा, सूर्य के देखने से देदीप्यमान प्रभा का धारक होगा, दो कलश देखने से अनेक निधियों को प्राप्त होगा, मछलियों का युगल देखने से सुखी होगा। सरोवर के देखने से अनेक लक्षणों से शोभित होगा, समुद्र के देखने से केवली होगा, सिंहासन के देखने से जगत् का गुरु होकर साम्राज्य को प्राप्त करेगा। देवों का विमान देखने से वह स्वर्ग से अवतीर्ण होगा, नागेन्द्र का भवन देखने से अवधिज्ञान रूपी लोचनों से सहित होगा। चमकते हुए रत्नों की राशि देखने से गुणों की खान होगा और निर्धूम अग्नि के देखने से कर्मरूपी इन्धन को जलानेवाला होगा तथा तुम्हारे मुख में जो वृषभ ने प्रवेश किया है, उसका फल यह है कि तुम्हारे निर्मल गर्भ में भगवान् वृषभदेव अपना शरीर धारण करेंगे। अब, भरतचक्रवर्ती द्वारा देखे गये स्वप्नों का विवरण इस प्रकार हैसिंहो मृगेन्द्रपोतश्च तुरगः करिभारभृत्। छागा वृक्षलतागुल्मशुष्कपत्रोपभोगिनः॥ शाखामृगा द्विपस्कन्धमारूढाः कौशिकाः खगैः। विहितोपद्रवा ध्वाक्षै प्रथमाश्च प्रमोदिनः॥ शुष्कमध्यं तडागं च पर्यन्तप्रचुरोदकम्। पांशुधूसरितो रत्नराशिः श्वार्थभुगर्हितः॥ तारुण्यशाली वृषभः शीतांशुः परिवेषयुक्। मिथोऽङ्गीकृतसाङ्गत्त्यौ पुङ्गवौ सङ्गलच्छियौ॥ रविराशावधूरलवतंसोऽब्दस्तिरोहितः । संशुष्कस्तरुरच्छायो जीर्णपर्णसमुच्चयः॥ षोडशैतेऽद्य यामिन्यां दृष्टाः स्वप्ना विदां वर। फलविप्रतिपत्तिं मे तद्गतां त्वमपाकुरु॥ आचार्य जिनसेन, आदिपुराण, 41/36.41 (1) सिंह, (2) सिंह का बच्चा, (3) हाथी के भार को धारण करनेवाला घोड़ा, (4) वृक्ष, लता और झाड़ियों के सूखे पत्ते खाने वाले बकरे, (5) हाथी के स्कन्ध पर बैठे प्रतीक दर्शन :: 677 For Private And Personal Use Only
SR No.020865
Book TitleJain Dharm Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2012
Total Pages876
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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