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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मानस्तम्भों की ऊँचाई तीर्थंकरों की ऊँचाई से बारह गुना होती है। मानस्तम्भ खंडों में विभाजित होता है। जैन मन्दिर के सम्मुख विशाल स्तम्भ बनवाने की प्रथा मध्यकालीन भारत में रही है। जैन वास्तुकला का यह प्रमुख अंग है। मन्दिर के सामने पूर्व या उत्तर दिशा में मन्दिर की ऊँचाई से सवा या डेढ़ ऊँचाई के बनाये जाते हैं। इनको स्थापित करने का मुख्य प्रयोजन यही है कि इनके दर्शन से मनुष्य अभिमान से रहित हो जाए व उनके मन में धार्मिक श्रद्धा उत्पन्न हो। सुप्रतिष्ठा (स्वस्तिक)- स्वस्तिक से मंगल भावना का प्रतीक है शुभ कार्य का द्योतक है। स्वप्न जैन शास्त्रों में शुभ और अशुभ स्वप्नों का बहुल मात्रा में वर्णन मिलता है। 24 तीर्थंकरों की माताओं को शुभ स्वप्न आये एवं भगवान् ऋषभदेव के पुत्र चक्रवर्ती भरत तथा आचार्य भद्रबाहु के शिष्य सम्राट चन्द्रगुप्त को अशुभ स्वप्न आये। सर्वप्रथम भगवान् आदिनाथ की माता द्वारा देखे गये स्वप्न इनका विवरण इस प्रकार है गजेन्द्रभवदाताङ्गं वृषभं दुन्दुभिस्वनम्। सिंहमुल्लङ्कताद्रय्यग्रं लक्ष्मी स्नाप्यां सुरद्विपैः॥ दामिनी लम्बमाने खे शीतांशुं द्योतिताम्बरम्। प्रोद्यल्तमब्जिनीबन्धुं बन्धुरं झषयुग्मकम्॥ कलसावमृतापूर्णी सरः स्वच्छाम्बु साम्बुजम्। वाराशिं क्षुभितावर्तं सैंह भासुरमासनम्॥ विमानमापतत् स्वर्गाद् भुवो भवनमुद्भवत्। रत्नराशिं स्फुरद्रश्मि ज्वलनं प्रज्वलद्युतिम्॥ आचार्य जिनसेन, आदिपुराण, 12/148.151 स्वच्छ और सफेद शरीर धारण करनेवाला ऐरावत हाथी, दुन्दुभि के समान शब्द करता हुआ बैल, पहाड़ की चोटी को उल्लंघन करनेवाला सिंह, देवों के हाथियों द्वारा नहलायी गयी लक्ष्मी, आकाश में लटकती हुई दो मालाएँ, आकाश को प्रकाशमान करता हुआ चन्द्रमा, उदय होता हुआ सूर्य, मनोहर मछलियों का युगल, जल से भरे हुए दो कलश, स्वच्छ जल और कमलों से सहित सरोवर, क्षुभित और भँवर से युक्त समुद्र, देदीप्यमान सिंहासन, स्वर्ग से आता हुआ विमान, पृथिवी से प्रकट होता हुआ नागेन्द्र का भवन, प्रकाशमान किरणों से शोभित रत्नों की राशि और जलती हुई देदीप्यमान अग्नि। अवधिज्ञान के द्वारा जिन्होंने स्वप्नों का उत्तम फल जान लिया है, ऐसा राजा नाभिराय मरुदेवी के लिए स्वप्नों का फल कहने लगे। 676 :: जैनधर्म परिचय For Private And Personal Use Only
SR No.020865
Book TitleJain Dharm Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2012
Total Pages876
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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