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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मुनि कान्तिसागर ___ यह खरतरगच्छीय 'जिनकीर्तिरत्नसूरिशाखा' के जिनकृपाचंदसूरि के शिष्य उ. सुखसागर के शिष्य थे। आपका हिन्दी, राजस्थानी साहित्य पर अच्छा अधिकार था। इसके अतिरिक्त इतिहास, पुरातत्व, कला और आयुर्वेद तथा ज्योतिष का भी अच्छा ज्ञान था। यह अच्छे चिकित्सक व रसायनज्ञ थे। 'खण्डहरों का वैभव', 'खोज की पगडण्डियाँ, जैन धातु प्रतिमा लेख, श्रमणसंस्कृति और कला, सईकी-एक अध्ययन आदि उच्चकोटि के शोधपूर्ण ग्रन्थ हैं। 'एकलिंगजी का इतिहास' अप्रकाशित है। आयुर्वेद साहित्य पर भी आपने कुछ लेख लिखे हैं-'आयुर्वेद का अज्ञात साहित्य' (मिश्रीमल अभिनन्दनग्रन्थ, पृ. 300-317) आदि। कन्नड के जैन आयुर्वेद-ग्रन्थकार मारसिंह (961-974) __यह कर्णाटक का गंगवंशीय राजा था। इसने 961-964 ई. तक राज्य किया। यह बहुत प्रतापी, प्रतिभासम्पन्न और समृद्धिवान राजा था। जैनधर्म के उत्थान में उसने पर्याप्त योगदान दिया था। उसने जीवन के परवर्ती काल में राज्य त्याग कर बंकापुर में अजितसेन भट्टारक के समीप सल्लेखना धारणा की थी। ___कुडुलूर के दानपत्र में मारसिंह को व्याकरण, तर्क, दर्शन और साहित्य का विद्वान होने के साथ 'अश्वविद्या' और 'गजविद्या' में भी निपुण बताया गया है। अश्वविद्या और गजविद्या में अश्वों की चिकित्सा व गजों की चिकित्सा का भी उल्लेख कुछ विद्वानों के अनुसार कहा जाता है। परन्तु उसका अश्व या गज चिकित्सा पर कोई वैद्यकग्रन्थ प्राप्त नहीं होता। कीर्तिवर्मा (1125 ई.) यह कर्णाटक का चालुक्य राजा था। यह जैन धर्मानुयायी था। इसने 1125 ई. में कन्नड़ भाषा में 'गोवैद्य (क)' ग्रन्थ लिखा है। यह ग्रन्थ कर्नाटकी भाषा (कन्नडी) में है। कन्नड़ में आयुर्वेद सम्बन्धी ग्रन्थ लिखने वालों में इसका नाम सर्वप्रथम है। कीर्तिवर्मा के पिता का नाम राजा त्रैलोक्यमल्ल, अग्रज का नाम राजा विक्रमांक और गुरु का नाम देवचन्द्र मुनि था। ये चालुक्य वंशी थे। त्रैलोक्यमल्ल का शासनकाल ई. 1042 से 1068 और इनके बड़े भाई का शासनकाल ई. 1076 से 1126 तक रहा। अतः कीर्तिवर्मा का काल 1125 ई. प्रमाणित होता है। कहा जाता है कि त्रैलोक्यमल्ल की केतली देवी नामक एक रानी जैन मतानुयायी थी, जिसने कुछ जैन मन्दिर भी बनवाए 644 :: जैनधर्म परिचय For Private And Personal Use Only
SR No.020865
Book TitleJain Dharm Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2012
Total Pages876
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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