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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सोमचन्द्र ने थोड़े ही समय में तर्क-साहित्य आदि सभी विद्याओं में अनन्य प्रवीणता प्राप्त कर ली थी। तत्पश्चात् उन्होंने अपने गुरु के साथ विभिन्न स्थानों में भ्रमण किया और अपने शास्त्रीय एवं व्यावहारिक ज्ञान में काफी वृद्धि की। विक्रम संवत् 1166 में 21 वर्ष की अल्पायु में ही मुनि सोमचन्द्र को उनके गुरु ने आचार्य पद पर प्रतिष्ठित करके हेमचन्द्र नाम दिया। जिसके कारण उन्होंने आचार्य हेमचन्द्र के नाम से प्रतिष्ठा प्राप्त की। उनकी मृत्यु वि.सं. 1229 में हुई थी। __ आचार्य हेमचन्द्र ने व्याकरण, कोश, छन्द, अलंकार, दर्शन, पुराण, इतिहास आदि विविध विषयों पर सफलतापूर्वक साहित्य सृजन किया है। शब्दानुशासन, काव्यानुशासन, छन्दोनुशासन, द्वयाश्रय महाकाव्य, योगशास्त्र, द्वात्रिंशतिकाएँ, अभिधान-चिन्तामणि तथा त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित- ये उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं। _ इस प्रकार आचार्य हेमचन्द्र एक साथ कवि, कथाकार, इतिहासकार एवं आलोचक थे। वे सफल और समर्थ साहित्यकार के रूप में प्रख्यात हुए हैं। पाश्चात्य विद्वान् डॉ. पिटर्स ने उनके विद्वत्तापूर्ण ग्रन्थों को देखकर उन्हें 'ज्ञानमहोदधि 13-जैसी उपाधि से अलंकृत किया है। काव्यानुशासन : आचार्य हेमचन्द्र का यह अलंकार-विषयक एकमात्र ग्रन्थ है। इसकी रचना वि.सं. 1196 के लगभग हुई है। इसमें सूत्रात्मक शैली का प्रयोग किया गया है। काव्यप्रकाश के पश्चात् रचे गये प्रस्तुत ग्रन्थ में ध्वन्यालोक, लोचन, अभिनवभारती, काव्यमीमांसा और काव्यप्रकाश से लम्बे-लम्बे उद्धरण प्रस्तुत किये हैं। इससे कुछ विद्वान् इसे संग्रह-ग्रन्थ की कोटि में मानते हैं। आचार्य मम्मट ने कुल 67 अलंकारों का उल्लेख किया है, किन्तु हेमचन्द्र ने मात्र 29 अलंकारों का उल्लेख कर शेष का इन्हीं में अन्तर्भाव किया है। मम्मट ने जिस अलंकार को अप्रस्तुतप्रशंसा नाम दिया है, उसे हेमचन्द्र ने 'अन्योक्ति' नाम से अभिहित किया है। मम्मट काव्यप्रकाश को 10 उल्लासों में विभक्त करके भी उतना विषय नहीं दे पाये हैं, जितना हेमचन्द्र ने काव्यानुशासन के केवल 8 अध्यायों में प्रस्तुत किया है। इसके साथ ही हेमचन्द्र ने अलंकार-शास्त्र में सर्वप्रथम नाट्य-विषयक तत्त्वों का समावेश कर एक नवीन परम्परा का प्रणयन किया है, जिसका अनुसरण परवर्ती आचार्य विश्वनाथ आदि ने भी किया है। ___ काव्यानुशासन में तीन भाग पाये जाते हैं- (1) सूत्र, (2) अलंकारचूडामणि नामक वृत्ति और (3) विवेक नामक टीका। इन तीनों के रचयिता आचार्य हेमचन्द्र ही हैं। रामचन्द्र-गुणचन्द्र रामचन्द्र और गुणचन्द्र का नाम प्राय: साथ-साथ लिया जाता है। इन विद्वानों के 606 :: जैनधर्म परिचय For Private And Personal Use Only
SR No.020865
Book TitleJain Dharm Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2012
Total Pages876
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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