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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir में लेखक ने श्रुतदेवता को नमस्कार किया है, अतः इतना ही कहा जा सकता है कि इसकी रचना किसी जैनाचार्य ने की होगी। श्री अगरचन्द्र जी नाहटा के एक लेख से ज्ञात होता है कि जैसलमेर के बृहद् ज्ञान भण्डार की ताड़पत्रीय प्रति में 'अलंकारदप्पण' के अतिरिक्त काव्यादर्श और उद्भटालंकार लघु-वृत्ति भी लिखी है, काव्यादर्श के अन्त में प्रति का लेखन-काल 'संवत् 1161 भाद्रपदे' लिखा है। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि प्रस्तुत रचना संवत् 1161 के पूर्व की होगी। उक्त श्रीयुत नाहटा जी ने भंवरलाल नाहटा के अलंकार-दप्पण के अनुवाद के प्रारम्भ में (भूमिका स्वरूप) प्रस्तुत ग्रन्थ के अलंकार सम्बन्धी विवरण को ध्यान में रखते हुए इसका निर्माण काल 8वीं से 11वीं शताब्दी माना है। जैनाचार्य-प्रणीत संस्कृत भाषा में निबद्ध प्रायः सभी अलंकारशास्त्र संवत् 1161 के पश्चात् रचे गये हैं। अतः पूर्ववर्ती होने से 'अलंकारदप्पण' की महत्ता स्वयंसिद्ध है। अलंकार-दप्पण : प्राकृत भाषा में निबद्ध यह एक मात्र कृति है। इसमें केवल 134 गाथाएँ हैं, जिनका सीधा सम्बन्ध अलंकारों से है। इसमें कुछ ऐसे नवीन अलंकारों का समावेश किया गया है, जो इसके पूर्व रचित ग्रन्थों में उपलब्ध नहीं हैं। इसीलिए इसकी महत्ता पर प्रकाश डालते हुए श्री अगरचन्द्र नाहटा ने लिखा है कि इस ग्रन्थ में निरूपित रसिक, प्रेमातिशय, द्रव्योत्तर, क्रियोत्तर, गुणोत्तर, उपमा-रूपक, उत्प्रेक्षा-यमक अलंकार अन्य लक्षण ग्रन्थों में प्राप्त नहीं हैं। ये अलंकार नवीन निर्मित हैं, या किसी प्राचीन अलंकारशास्त्र का अनुसरण हैं, निश्चित नहीं कहा जा सकता। फिर भी उपमा आदि के महत्त्वपूर्ण विवेचन से प्रस्तुत ग्रन्थ की मौलिकता अक्षुण्ण है। वाग्भट-प्रथम वाग्भटालंकार के यशस्वी प्रणेता वाग्भट-प्रथम और आचार्य हेमचन्द्र, ये दोनों समकालीन आचार्य होते हुए भी काल की दृष्टि से वाग्भट-प्रथम हेमचन्द्र के पूर्ववर्ती हैं, किन्तु वाग्भट-प्रथम की अपेक्षा आचार्य हेमचन्द्र को अधिक प्रसिद्धि प्राप्त हुई है, इसलिए कुछ विद्वानों ने आचार्य हेमचन्द्र को पूर्व में स्थान दिया है और वाग्भट-प्रथम को बाद मे। काव्यानुशासन के रचयिता वाग्भट को अभिनव-वाग्भट अथवा वाग्भटद्वितीय के नाम से अभिहित किया जाता है। डॉ. नेमिचन्द्र ज्योतिषाचार्य ने नेमिनिर्वाणकाव्य के कर्ता वाग्भट को वाग्भट-प्रथम कहा है; किन्तु आधुनिक विद्वान् सामान्यतः वाग्भटालंकार के कर्ता को वाग्भट-प्रथम और काव्यानुशासन के कर्ता को वाग्भट-द्वितीय मानते है। आचार्य वाग्भट का प्राकृत नाम बाहड तथा पिता का नाम सोम था। यह एक कुशल कवि और किसी (जयसिंह राजा के) राज्य के महामात्य थे। प्रभावक-चरित में बाहड 604 :: जैनधर्म परिचय For Private And Personal Use Only
SR No.020865
Book TitleJain Dharm Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2012
Total Pages876
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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