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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org णमोकार महामन्त्र तीर्थंकर परम्परा, जिनागम और अनुयोग Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं णमो आइरियाणं । णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्व साहूणं ।। राकेश जैन शास्त्री अर्थ - लोक में सब अर्हन्तों को नमस्कार हो, सब सिद्धों को नमस्कार हो, सब आचार्यों को नमस्कार हो, सब उपाध्यायों को नमस्कार हो और सब साधुओं को नमस्कार हो । यह नमस्कार मन्त्र पंच परमेष्ठियों को नमस्कार करने वाला महामन्त्र है । अर्हन्तादि पाँचों परम पद अनादि से पूज्यता लिए हुए हैं, इसलिए जैन परम्परा में यह अनादि महामन्त्र भी कहलाता है । यद्यपि णमोकार मन्त्र के ये जो पद हैं, वे 'षट्खण्डागम' नामक महान ग्रन्थ के मंगलाचरण के रूप में निबद्ध हैं, तथापि वर्तमान युग में प्रचलित मन्त्र आचार्य पुष्पदन्त मुनिराज द्वारा रचित होने से निबद्ध मंगल है। अनादि से पूज्य परमपद पाँच ही हैं और वे अर्हन्त, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, साधु ही हैं, अतः इन को नमस्कार करने वाला मन्त्र अनादि से ही प्रसिद्धि को प्राप्त है I महामन्त्र की महानता यही है कि इसमें किसी प्रकार की कोई भी कामना नहीं रखी गयी है। किसी व्यक्ति विशेष को भी नमस्कार नहीं किया गया है। वीतराग दशा को प्राप्त जो भी महापुरुष हैं, वे सभी इस मन्त्र में नमस्कृत हैं। किसी पन्थसम्प्रदाय, मत-मतान्तर के अनुयायियों से भी इसका कोई सम्बन्ध नहीं है, अतएव यह विश्वमन्त्र के रूप में भी प्रसिद्ध है । इस णमोकार महामन्त्र की महिमा सूचक छन्द भी अति - प्रसिद्ध है एसो पंच णमोयारो सव्व पावप्पणासणो । मंगलाणं च सव्वेसिं पढमं होदि मंगलं ।। अर्थात् यह पंच नमस्कार मन्त्र सब पापों का नाश करने वाला है और सब मंगलों में पहला मंगल है 1 For Private And Personal Use Only तीर्थंकर परम्परा, जिनागम और अनुयोग :: 55
SR No.020865
Book TitleJain Dharm Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2012
Total Pages876
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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