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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir द्वितीय अर्द्धश्लोकाधिकार परिच्छेद में 87 और तृतीय पदाधिकार परिच्छेद में 33 श्लोक हैं। यह एक अनेकार्थक कोश है। इसके प्रथम परिच्छेद में एक श्लोक में एक शब्द के अनेक अर्थों का उल्लेख है। दूसरे परिच्छेद में मात्र आधे श्लोक में ही शब्द का अर्थ वर्णित है और तृतीय परिच्छेद में चौथाई श्लोक में एक शब्द के अनेक अर्थ निबद्ध हैं। साथ ही कुछ नवीन शब्दों का संकलन भी इस कोश में मिलता है। द्विरूपकोश निघंटु- यह हर्ष कवि कृत कोश अद्यावधि अप्रकाशित है। कोश में कुल 230 श्लोक हैं। अनुमानतः यह किसी जैन कवि की रचना है। इसकी ताडपत्रीय प्रति दि.जैन मठ चित्तामूर में सुरक्षित है। एकाक्षरनाममाला- यह 115 श्लोकों की लघु रचना है। इसके रचयिता जैनमुनि विश्वशम्भु हैं। इसमें वर्णादिक्रम से एक-एक वर्ण का अलग-अलग अर्थ बताया गया है। उपर्युक्त प्रसिद्ध एवं प्राचीन संस्कृत, प्राकृत एवं देशी कोश साहित्य के अतिरिक्त कुछ ऐसे कोशों की सूचनाएँ मिलती हैं। इनमें एक एकाक्षर नाममाला के लेखक जिनदत्तसूरि के शिष्य अमरचन्द्र हैं। इसमें एक-एक अक्षर का वर्णमाला क्रम से अर्थ बतलाया गया है। दूसरी रचना राजशेखर के शिष्य सुधाकैलाशकृत है; इसमें मात्र 50 पद्य हैं; जिनमें वर्णमाला क्रम से एक-एक वर्ण का पृथक्-पृथक् अर्थ बतलाया गया है। एक अन्य एकाक्षर नाममाला धनञ्जय की नाममाला में अमरकीर्ति-कृत भाष्य के साथ प्रकाशित है। इसमें कुल 19 श्लोक हैं। रचना साधारण है। स्वरविशिष्ट एकएक अक्षर का पृथक्-पृथक् अर्थ बतलाया गया है। इनके अतिरिक्त पुरुषोत्तम देवकृत त्रिकांडशेष, हारावली और एकाक्षर कोश के भी उल्लेख मिलते हैं। यद्यपि ये रचनाएँ अभी तक अप्राप्त हैं। रामचन्द्रकृत 'देश्य-निदेश-निघंटु' और विमलसूरिरचित 'देश्य शब्द समुच्चय' भी उपयोगी हैं। संवत् 1640 में विमलसूरि ने देशीनाममाला के शब्दों का सार लेकर अकारादिक्रम से देश्यनिदेशनिघंटु की रचना की। पुण्यरत्नसूरिकृत द्वयक्षरकोश, असगकविकृत नानार्थ कोश, रामचन्द्रकृत नानार्थसंग्रह एवं हर्षकीर्तिरचित नाममाला की गणना भी उपयोगी कोशों में की जाती है। __शब्दप्रभेदनाममाला अथवा शब्द-भेद-प्रकाश की रचना महेश्वर कवि ने की है। इसका एक प्रचलित नाम विश्वप्रकाश भी है। खरतरगच्छीय भानुकेस के शिष्य जिनविमल ने इसकी वृत्ति संवत् 1654 में लिखी। साधुकीर्ति उपाध्याय के शिष्य साधुसुन्दर गणि ने शब्दरत्नाकर की रचना की है। इस कोश में 6 कांड और 1011 श्लोक हैं। तपागच्छीय सूरचन्द्र के शिष्य भानुचन्द्र ने नामसंग्रहकोश की रचना की है। हर्षकीर्ति सूरि की लघुनाममाला भी भाषा और साहित्य के अभ्यासी को उपयोगी कृतियाँ हैं। धनमित्र रचित एक निघंटु की सूचना भी मिलती है। अनेकार्थ कोश की सूचना मदन पराजय कोश-परम्परा एवं साहित्य :: 591 For Private And Personal Use Only
SR No.020865
Book TitleJain Dharm Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2012
Total Pages876
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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