SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 571
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir का अर्थ है शब्द द्रव्य है, परमाणु-जन्य है। पंचास्तिकाय में उल्लेख है कि शब्द स्कन्ध-जन्य है। स्कन्ध परमाणु-दल का संघात होता है और इन स्कन्धों के आपस में टकराने से / स्पर्शित होने से शब्द उत्पन्न होता है, इसप्रकार यह शब्द नियत रूप से उत्पन्न होने वाला, उत्पाद्य है अर्थात् पुद्गल की पर्याय है। शब्द की यह उत्पत्ति पुद्गल - स्कंधों के आपस में टकराने से / स्पर्शित होने/संघात और भेद से होती है। आचार्य प्रभाचन्द्र ने शब्दों को पुद्गल का कार्य मानते हुए उन्हें पुद्गलों में उसीप्रकार माना है, जैसे कि कोई भी कार्य द्रव्य कारण-द्रव्य में आश्रित रहता है। जैनदर्शन में पुद्गलास्तिकाय आदि के मूलभूत परमाणु नित्य माने गए हैं। वैशेषिक में पृथिवी, जल, तेज, और वायु के परमाणुओं में जातिभेद माना गया है, परन्तु जाति की दृष्टि से सभी परमाणु एक जैसे हैं। सभी में रूप, रस, गन्ध, और स्पर्श धर्म पाए जाते हैं। उन एक-विध परमाणुओं से उत्पन्न पदार्थों में भेद का कारण घन-प्रुतर होना है। शब्द भी इन्हीं एक-विध परमाणुओं के संयोग-विशेष का फल है। शब्द के द्रव्यत्व की चर्चा करते हुए आचार्य प्रभाचन्द्र अपने प्रमेयकमलमार्तण्ड में कहते हैं कि तीव्र - शब्द के सुनने से कान का पर्दा विदीर्ण होता हुआ देखा जाता है, इससे शब्द की स्पर्श-गुण-धर्मता सिद्ध होती है । विदारण का कारण अभिघात है और किसी स्पर्शवान् द्रव्य से ही सम्भव है, अस्पर्शी से नहीं। इसीप्रकार शब्द में अल्पत्व, दीर्घत्व एवं महत्त्व परिमाण देखने में आता है। यथा- 'अल्पो शब्दः ' 'महान शब्दः ' 'एक शब्दः' 'द्वौ शब्दः' आदि प्रयोगों में शब्द में संख्या गुण उपलब्ध होता है। प्रतिकूल दिशा से आने वाली वायु द्वारा शब्द का अभिघात देखा जाता है, इससे शब्द में संयोग गुण की उपलब्धि प्रमाणित होती है, अतः इन गुणों का आश्रय होने से शब्द द्रव्य - रूप है। गुणाश्रय होने के अतिरिक्त क्रियाश्रित होने से भी शब्द द्रव्यात्मक है। वैशेषिक शब्द को गुण मानने के कारण उसमें क्रिया को स्वीकार नहीं करते। अतः दूरस्थ शब्द के ग्रहणार्थ उन्हें वीचि-तरंग न्याय से अथवा कदम्ब - मुकुल न्याय से शब्द से शब्दतर की उत्पत्ति माननी पड़ती है। जबकि वास्तविकता इससे कहीं भिन्न है। शब्द की यह उत्पत्ति पुद्गल स्कन्धों के संघात और भेद से होती है। आचार्य प्रभाचन्द ने शब्दों को पुद्गल का कार्य मानते हुए उन्हें पुद्गलों में उसी प्रकार श्र माना है, जैसे कि कोई भी कार्य द्रव्य कारण - द्रव्य में आश्रित रहता है। - जैन दार्शनिकों के अनुसार पुद्गल द्रव्य का सामान्य लक्षण है- रूप, रस, गन्ध और स्पर्श से युक्त होना । पुद्गल के दो भेद हैं— 1. परमाणु 2. स्कन्ध 562 :: जैनधर्म परिचय For Private And Personal Use Only
SR No.020865
Book TitleJain Dharm Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2012
Total Pages876
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy