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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रमाणांगुल के अन्तर से चलता है। गतिविशेष के कारण जिस पूर्णिमा को राहुविमान चन्द्रविमान को आच्छादित करता है, तब चन्द्रग्रहण होता है तथा जिस अमावस्या को केतुविमान सूर्य विमान को आच्छादित करता है तब सूर्यग्रहण होता है । (त्रि. सा. 339-340) सूर्य और चन्द्रमा के विमानों को 16-16 हजार, ग्रहों के विमान को आठ-आठ हजार, नक्षत्रों के विमान को 4-4 हजार और तारों के विमान को दो-दो हजार वाहक देव लेकर चलते हैं। यद्यपि ज्योतिष्क विमान स्वभावतः सदैव घूमते रहते हैं, तो भी समृद्धि-विशेष को अभिव्यक्त करने के लिए आभियोग्य देव इन्हें निरन्तर ढोते रहते हैं। ये देव सिंह, गज, वृषभ और अश्व का आकार धारण किए रहते हैं। _ 'मेरु प्रदक्षिणा-नित्यगतयो नृलोके'। 4/13 त. सूत्र-मनुष्य लोक में ज्योतिषी देव निरन्तर गमन करते रहते हैं। इसके बाहर वे गमन नहीं करते; क्योंकि मनुष्य-लोक के बाहर के ज्योतिष्क विमान स्थिर स्वभाव वाले हैं'-'बहिरवस्थिताः 14/15 त. सूत्र-मनुष्य लोक में ज्योतिषियों के विमान आभियोग्य जाति के देवों से प्रेरित होकर निरन्तर गतिशील रहते है, क्योंकि इन देवों का कर्म गति-रूप से ही फलता है। ये सुमेरु पर्वत से 1121 योजन दूर रहकर ही उस पर्वत की प्रदक्षिणा करते हैं।126 ___'तत्कृतः कालविभागः' 4/14 त. सूत्र- स्तव, लव, घड़ी, मुहूर्त, पहर, दिनरात, पक्ष, माह, ऋतु, अयन, संवत्सर आदि व्यवहार-काल का विभाग गतिशील ज्योतिषी देवों द्वारा किया हुआ है। इनके गमन के फलस्वरूप ही जगत् में घड़ी-घंटा, दिनरात आदि का व्यवहार होता है। यह काल-व्यवहार मनुष्य-लोक में ही होता है। इसके बाहर के ज्योतिषी देव स्थिर-स्वभावी हैं, गमन नहीं करते। अतः काल-व्यवहार नहीं है। __ मनुष्यलोक में 132 सूर्य तथा 132 चन्द्रमा हैं-जम्बूद्वीप में दो-दो, लवणसमुद्र में चार-चार, धातकीखंड में 12-12, कालोदधि में 42-42 और पुष्करार्ध में 72-72 सूर्य और चन्द्रमा हैं। ज्योतिषियों में चन्द्रमा इन्द्र और सूर्य प्रतीन्द्र होता है। एक चन्द्रपरिवार में एक सूर्य, 28 नक्षत्र, 88 ग्रह और 66975 कोड़ाकोड़ी तारे होते हैं। जम्बूद्वीप में दो सूर्य और दो चन्द्रमा हैं। एक सूर्य जम्बूद्वीप की परिक्रमा दो दिनरात में पूरी करता है। इसका परिभ्रमण-क्षेत्र जम्बूद्वीप में 180 योजन तथा लवण-समुद्र में 3300 योजन है। सूर्य-परिभ्रमण की कुल 184 गलियाँ (वीथी) हैं। इनमें दो सूर्य क्रमशः एक-एक गली में घूमते हैं। चन्द्रमा को पूरी परिक्रमा देने में दो दिनरात से कुछ-अधिक समय लगता है। इसी से चन्द्रोदय के काल में हीनाधिकता होती है। चन्द्रकलाएँ घटती-बढ़ती क्यों हैं? ...श्री त्रिलोकसार (गाथा-342) के अनुसार भूगोल :: 545 For Private And Personal Use Only
SR No.020865
Book TitleJain Dharm Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2012
Total Pages876
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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