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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ही जिन-भवन हैं तथा 10 प्रकार के चैत्यवृक्ष भी जिन-प्रतिमाओं सहित विद्यमान हैं। ये भवनवासी अष्टगण ऋद्धियों के धारी तथा मणिमय आभूषणों से दीप्त होते हैं। पूर्वभव के तप के प्रभाव से आयुपर्यन्त सुखरूप इष्ट-भोग भोगते हैं। रागवश ये देव द्वीप, कुलाचल, भोगभूमि, नन्दनवन, बावड़ी और नदी तटों पर भी क्रीड़ा करते हैं। (ति. प. 3/249) इनका वैक्रियिक शरीर मल-मूत्र और सप्तधातुओं से रहित होता है। ___व्यन्तर- अनेक देशान्तरों में इनका निवास होने से ये व्यन्तर कहलाते हैं। नामकर्म के उदय से इनके 8 कुल होते हैं- (1) किन्नर, (2) किम्पुरुष, (3) महोरग, (4) गन्धर्व, (5) यक्ष, (6) राक्षस, (7) भूत और (8) पिशाच। ये देव दिव्य वैक्रियिक शरीरवाले तथा मानसिक आहार करने वाले होते हैं। किन्नर हरितवर्ण, किम्पुरुष धवलवर्ण, महोरग श्यामवर्ण, गन्धर्व हेमवर्ण, यक्ष-राक्षस-भूत-पिशाच-ये सभी श्यामवर्ण होते हैं। इनके आवासों में जिन-प्रतिमा और मानस्तम्भ-सहित चैत्यवृक्ष भी होते हैं ।120 ___ जम्बूद्वीप से असंख्यात द्वीप-समुद्र लाँघकर चित्रा पृथ्वी के खरभाग में सात प्रकार के व्यन्तरों के आवास हैं तथा पंकबहुल भाग में राक्षसों के आवास हैं। इनके सिवाय पृथ्वी के ऊपर मध्यलोक के भूमितल पर भी द्वीप, पर्वत, समुद्र, ग्राम, नगर, तिराहाचौराहा, घर-आँगन, गली, वन, उद्यान, जलाशय, वृक्ष, देवालय आदि में भी ये निवास करते हैं। ___ ज्योतिष देव- ये पाँच प्रकार के हैं- (1) सूर्य, (2) चन्द्र, (3) ग्रह, (4) नक्षत्र, और (5) प्रकीर्णक तारे।22 ये देव प्रकाशमान विमानों में रहते हैं । अतः ज्योतिष्क। ज्योतिषी देव कहलाते हैं। ये मध्यलोक में पृथ्वी के समतल भूभाग से 790 योजन की ऊँचाई से लेकर 900 योजन की ऊँचाई तक 110 योजन मोटे भाग में विद्यमान हैं। ज्योतिषियों का यह पहेल तिर्यक्रूप से असंख्यात द्वीप समुद्रों तक घनोदधिवातवलय तक फैला है। सबसे नीचे तारे हैं और सबसे ऊपर अन्त में शनि का विमान है।23 ज्योतिष्क तारे । सूर्य । चन्द्रमा नक्षत्र | बुध । शुक्र | गुरु | मंगल | शनि भूतल से | 790 | 800 880884 | 888 891 | 894897 | 900 ऊँचाई योजन | योजन | योजन | योजन योजन | योजन योजन | योजन | योजन -चित्रा पृथ्वी से ऊपर बुध और शनि के अन्तराल में 888 योजन से 900 योजन के बीच में शेष बचे 83 ग्रहों की नित्य नगरियाँ हैं।124 ज्योतिषी देवों के विमान लोहे के अर्धगोले के समान ऊपर समतल और चौड़े तथा नीचे गोलाकार हैं ।125 इनका प्रकाशित निचला भाग ही हमें दिखता है। राहु का विमान चन्द्रमा के विमान के नीचे तथा केतु का विमान सूर्य विमान के नीचे चार 544 :: जैनधर्म परिचय For Private And Personal Use Only
SR No.020865
Book TitleJain Dharm Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2012
Total Pages876
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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