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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुषमा-सुषमा प्रथम काल-ढाईद्वीप के पाँचों देव-कुरु तथा पाँचों उत्तर-करु क्षेत्रों में सदा वर्तता है। यहाँ प्रथम-काल-जैसी आयु उत्सेध, सुख आदि की वर्तना सदा रहती है। सुषमा नामक द्वितीय-काल-जैसी वर्तना ढाईद्वीप के पाँचों हरि तथा रम्यक क्षेत्रों में सदा होती रहती है। सुषमा-दुषमा नामक तृतीय काल की वर्तना पाँचों हैमवत और हैरण्यवत क्षेत्रों में सदा बनी रहती है। ये क्रमशः उत्तम, मध्यम और जघन्य भोगभूमियाँ कही जाती हैं। ढाईद्वीप में इस तरह 10 उत्तम, 10 मध्यम और 10 जघन्य कुल 30 शाश्वत भोगभूमियाँ हैं। ये सभी अवस्थित भूमियाँ है। भोगभूमि वैशिष्ट्य7- यहाँ की भूमि दर्पण-सदृश स्वच्छ निर्मल कंकड़-पत्थर धूल-धुआँ आग आदि से रहित होती है। यहाँ के सरोवर तथा बावड़ियाँ दूध, इक्षुरस, जल, मधु और घी से भरी होती हैं। यहाँ 2, 3, 4 इन्द्रिय तथा असंज्ञी पंचेन्द्रिय जीव, जलचर, नपुंसक एवं लब्ध्यपर्याप्तक जीव नहीं होते। कल्पवृक्षों के प्रकाश से सदाप्रकाशित रहने के कारण रात-दिन का भेद यहाँ नहीं होता। सर्दी-गर्मी, चोर-शत्रु, रोग-उपद्रव आदि की बाधाएँ तथा प्राकृतिक आपदाएँ भी यहाँ नहीं होतीं। भोगोपभोग की सभी सामग्री 10 प्रकार के कल्पवृक्षों से प्राप्त होती रहती है। यहाँ स्त्री-पुरुष युगलरूप में ही जन्मते हैं और आयु पूर्ण होने के पूर्व युगल सन्तान को जन्म देकर स्वर्गवासी हो जाते हैं। भोगभूमिया जीवों में/मनुष्यों में जाति-कुल, राजाप्रजा, स्वामी-सेवक-जैसा भेद नहीं होता। इनमें आपसी वैर-विरोध तथा व्यसन आदि बुराइयाँ भी नहीं होतीं। ये मन्द-कषायी और शान्तिप्रिय होते हैं। यहाँ सिंह आदि तिर्यंच भी शाकाहारी और शान्त-चित्त होते हैं। कल्पवृक्षों से शाकाहार प्राप्त करते हैं। यहाँ के मनुष्य-तिर्यंचों का वज्रवृषभनाराच संहनन और समचतुरस्र संस्थान होता है आयु के 9 माह शेष रहने पर स्त्रियाँ गर्भवती होती हैं और 9 माह बाद युगलिया सन्तान को जन्म देकर स्त्रियाँ जंभाई लेकर और पुरुष छींक लेकर दिवंगत हो जाते हैं। इनका शरीर कपूर की भाँति उड़ जाता है। इनका कदली-घात अकाल-मरण नहीं होता। मरकर नियम से ये देव होते हैं। मिथ्यादृष्टि मनुष्य-तिर्यंच मरकर भवनत्रिक में जन्म लेते हैं, पर सम्यग्दृष्टि आयु पूर्ण कर सौधर्म-ईशान स्वर्गों में जन्मते हैं। __ भोगभूमि में कौन जन्मते हैं ?–मन्दकषायी, सत्यवादी, व्यसनमुक्त, 3 मकार और 5 उदुम्बरफल त्यागी, निरभिमानी, शान्तिप्रिय, गुणानुरागी, सत्पात्रों को दान देनेवाले तथा दान की अनुमोदना करने वाले मनुष्य-तिर्यंच भोगभूमियों में जनमते हैं। ___ अन्य अवस्थित भूमियाँ-ढाईद्वीप के सभी विदेहक्षेत्रों में दुषमा-सुषमा नामक चतुर्थ काल की वर्तना निरन्तर बनी रहती है ।104 इसी से यहाँ धर्मतीर्थ का प्रवर्तन होता रहता है। कम से कम बीस तीर्थंकर भगवन्त यहाँ सदा विराजते हैं। यहाँ संख्यात वर्षों की आयुवाले तथा 500 धनुष शरीर की अवगाहना वाले मनुष्य होते हैं। ये प्रतिदिन आहार करते हैं। इनकी उत्कृष्ट आयु एक पूर्व-कोटि-प्रमाण तथा जघन्य आयु अन्तर्मुहूर्त-प्रमाण होती है। 538 :: जैनधर्म परिचय For Private And Personal Use Only
SR No.020865
Book TitleJain Dharm Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2012
Total Pages876
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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