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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दोनों नदियों और विजयार्ध पर्वत से भरतक्षेत्र के 6 खंड हो जाते हैं। विजयार्ध के उत्तर में तीन और दक्षिण में तीन। दक्षिण के तीन खंडों में से एक बीच का खंड आर्यखंड और शेष पाँचों खंड म्लेच्छ-खंड कहलाते हैं। आर्यखंड में नाना भेदों से युक्त काल का तथा धर्मतीर्थ का प्रवर्तन होता है। उत्तरी भरत के तीन खंडों के मध्यवर्ती खंड के बहमध्यभाग में चक्रवर्तियों के मान का मर्दन करने वाला, नाना चक्रवर्तियों के नामों से अंकित नीचे से ऊपर तक सर्वत्र रत्नमय, 100 योजन ऊँचा गोलाकार वृषभगिरि है। दिग्विजय के बाद चक्रवर्ती इस पर अपना नाम और प्रशस्ति लिखता PM. djाम . . .. Animation RETRICT tva HEND SEANTE r - .2016 inx *32lPaymsrawinner in ४. हिमवान् पर्वत- भरतक्षेत्र के आगे उत्तर में भरत क्षेत्र से दूने विस्तार वाला, पूर्वपश्चिम में समुद्र तक फैला सुवर्णमय 100 योजन ऊँचा हिमवान् पर्वत है। इसपर बीचोंबीच पद्म सरोवर है, जिसके पूर्वी द्वार से गंगानदी, पश्चिमी द्वार से सिन्धुनदी तथा उत्तरी द्वार से रोहितास्या नदी निकलती है। इस पर्वत पर 25-25 योजन ऊँचे ग्यारह कूट हैं। पूर्व के प्रथम कूट पर सिद्धायतन (जिनालय) हैं तथा शेष 10 कूटों पर व्यन्तरदेव और देवियाँ रहती हैं। हैमवतक्षेत्र- हिमवान् और महाहिमवान् पर्वतों के बीच हैमवत क्षेत्र है। यह भरतक्षेत्र से चौगुना तथा हिमवान् से दूने विस्तार वाला है। इस क्षेत्र के बहुमध्यभाग में श्रद्धावान् नामक नाभिगिरि है। इस क्षेत्र में रोहित और रोहितास्या नदियाँ क्रमश: पूर्व और पश्चिम दिशा में बहती हैं। ये दोनों नाभिगिरि की दो कोस दूर से परिक्रमा करती हुई अपनी-अपनी दिशाओं में मुड़कर समुद्र में मिल जाती हैं। इस क्षेत्र में सदैव सुखमा-दुःखमा-काल-जैसी व्यवस्था रहती है। अतः यह शाश्वत जघन्य भोगभूमि महाहिमवान् पर्वत– हैमवतक्षेत्र के उत्तर में हिमवान् से चौगुना बड़ा रजतमय भूगोल :: 523 For Private And Personal Use Only
SR No.020865
Book TitleJain Dharm Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2012
Total Pages876
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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