SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 531
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir और पुंडरीक नाम के 6 सरोवर (हृद) हैं।" इन सरोवरों में पृथ्वीकायिक एक-एक मुख्य कमल अपने परिवार कमलों के साथ सुशोभित हैं। मुख्य कमलों के भवनों में क्रमशः श्री, ह्री, धृति, कीर्ति, बुद्धि और लक्ष्मी देवी निवास करती हैं तथा परिवारकमलों के भवनों में सामानिक तथा पारिषद् जाति के देव रहते हैं । इन सरोवरों से गंगा-सिन्धु, रोहित-रोहितास्या, हरित-हरिकान्ता, सीता-सीतोदा, नारी-नरकान्ता, सुवर्णकूला-रूप्यकूला और रक्ता-रक्तोदा नामक 14 महानदियाँ निकलती हैं। ये नदियाँ भरतादि क्षेत्रों में से दो-दो करके बहती हैं। इन नदी युगलों में से पूर्वपूर्व की नदी पूर्वी-समुद में तथा बाद की नदी पश्चिमी-समुद्र में गिरती है।" , भरतक्षेत्र-जम्बूद्वीप के दक्षिणी भाग में तीन ओर से लवणसमुद्र से घिरा 526 योजन विस्तृत धनुषाकार 'भरतक्षेत्र' है। यह जम्बूद्वीप का 190 वाँ भाग है। इसके उत्तर में हिमवान् पर्वत पूर्व-पश्चिम दिशा में फैला है। भरतक्षेत्र के बीच में पूर्व-पश्चिम दिशा में रजतमय (सफेद) विजयार्ध पर्वत फैला है।43 विजयार्ध पर्वत और हिमवन् पर्वत के पद्म सरोवर से निकलने वाली गंगा-सिन्धु नदियों के निमित्त से भरतक्षेत्र छह खंडों में विभक्त हो जाता है। 19 भरत क्षेत्र प्रचण्ड Astro_tak SHkre NHE RECERAM बेन सद शmarix-16 9 लवण पण सागर पद्म सरोवर से निकलकर गंगा-सिन्धु नदियाँ क्रमश: पर्वतमूल में स्थित गंगाकूट और सिन्धुकूट में गिरती हैं। गंगानदी गंगाकूट से निकलकर दक्षिण की ओर बहती हुई विजयापर्वत के मूल में स्थित खंडप्रपात गुफा से होकर भरतक्षेत्र के दक्षिण भाग में पहुँचती है और सिन्धुनदी सिन्धुकूट से निकलकर दक्षिण की ओर बहती हुई विजयार्धपर्वत की तमिस्रगुफा में से होकर दक्षिणी भरतक्षेत्र में पहुँचती है। यहाँ से ये दोनों नदियाँ दक्षिणी भरतक्षेत्र के आधे भाग तक जाकर गंगानदी पूर्वी-समुद्र की ओर तथा सिन्धुनदी पश्चिमी-समुद्र की ओर मुड़कर अपने-अपने समुद्रों में जा मिलती हैं। 522 :: जैनधर्म परिचय For Private And Personal Use Only
SR No.020865
Book TitleJain Dharm Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2012
Total Pages876
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy