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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir क्रोध को जीतने का उपाय कोपेन कोऽपि यदि ताडयतेऽथ हन्ति, पूर्व मयाऽस्य कृतमेतदनर्थबुद्ध्या। दोषो ममैव पुनरस्य न कोऽपि दोषो, ध्यात्वेति तत्र मनसा सहनीयमस्य।। 55।। अर्थ-यदि कोई व्यक्ति क्रोध से ताडित करता है, तो उस समय ऐसा विचार करना चाहिए कि मैंने पहले अज्ञानता से इसका अनर्थ किया है इसलिए ये कष्ट दे रहा है इसमें मेरा ही दोष है, इसका नहीं , ऐसा विचार करके मन से सहन करना चाहिए। अपकारिणिचेत् क्रोधः, क्रोधे क्रोधः कथं न ते। धर्मार्थकाममोक्षाणां, चतुर्णा परिपन्थिनि।।80 ।। अर्थ-धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष, इन चारों का विनाश करने वाला यदि क्रोध अपकारी है तो तुम्हारा क्रोध पर ही क्रोध क्यों नहीं होता अर्थात् क्रोध पर ही क्रोध करना चाहिए। क्रोध बिना लगाम के घोड़े के समान गड्ढे में पटकने वाला है। क्रोध संसार को बढ़ाने के लिए अग्नि को प्रज्वलित करने वाली हवा के समान है, क्रोध जठराग्नि को और पुण्य को नष्ट करने वाला है। क्रोध, पापों को करने के लिए धूम को उत्पन्न करने वाली अग्नि के समान है। क्रोध-मिथ्या आग्रह रूपी दृष्टि को करने वाला है। क्रोध दुष्ट स्वभाव वाले मन्त्री के समान है। क्रोध गुण रूपी रत्नों को नष्ट करने के लिये समुद्र में लगी हुई बडबानल के समान है। क्रोध सम्यग्दर्शन रूपी पर्वत की शोभा को नष्ट करने के लिए वज्र के समान है। चारित्र और ध्यान को जलाने के लिये वनाग्नि के समान है। दुष्ट कर्म वन को हरा भरा रखने के लिये मेघ के समान है। . एक व्यक्ति के क्रोध से, कभी न झगड़ा होय। आपस में जब दो मिले, तब निश्चित झगड़ा होय ॥1॥ निन्दक नियरे राखिये, आंगन कुटी छवाय। बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करे सुवाय॥4॥ उत्तम मार्दव–'मृदो वः मार्दवम्'- मृदुता का भाव रखना मार्दव है। मन, वचन और काय से मृदु होना मार्दव अथवा मृदुता है। यदि मृदुता में त्रियोग में से किसी एक योग की भी वक्रता है तो वह मायाचार है। मान का परिहार करना मार्दव धर्म कहलाता है। उत्तम जाति, कुल, देश, ऐश्वर्य, रूप, ज्ञान, तप, बल, शिल्प इन आठ से युक्त होने पर पर्युषण पर्व :: 413 For Private And Personal Use Only
SR No.020865
Book TitleJain Dharm Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2012
Total Pages876
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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