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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 2. समीक्ष्यव्रतमादेयं पाल्यं प्रयत्नतः । छिन्नं दर्पात्प्रमादाद्वा प्रत्यवस्थाप्यमञ्जसा।। -सागार धर्मामृत, 2/79 3. देशसर्वतोऽणमहती।। तत्त्वार्थसत्र 7/2 4. गृहिणां त्रेधा तिष्ठत्यणुगुणशिक्षा व्रतात्मकं चरणम् । पञ्चत्रिचतुर्भेदं त्रयं यथाख्यातमाख्यातम्।। __ आचार्य समन्तभद्र : रत्नकरण्ड श्रावकाचार-51 5. पंचवदाणि जदीणं अणुव्वदाइं च देसविरदाणं। ण हु सम्मत्तेण विणा तो सम्मतं पढमदाए।। __ भगवतीआराधना, विजयोदया टीका में उद्धृत-116/277/16 6. भगवतीआराधना, विजयोदया टीका 421/614/11 7. जैनेन्द्रसिद्धान्त-कोश, भाग-3, पृ. 624-629 8. आचार्य जिनसेन : हरिवंशपुराण 34/52-124 9. जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश-भाग-3 पृ. 626 पर उद्धृत। 10. हरिवंश पुराण 34/125 11. वही 34/126 12. हरिवंश पुराण 34/127-130 13. जैन व्रत कथा संग्रह (संग्रहकर्ता-मोहनलाल शास्त्री), पृ. 125-129 14. पं. मोहनलाल शास्त्री द्वारा संगृहीत जैन व्रत कथा संग्रह से साभार उद्धृत, प्रकाशक-सरल जैन ग्रन्थ भण्डार, मोहनलाल शास्त्री मार्ग, जवाहरगंज, जबलपुर (म.प्र.), वीर निर्वाण संवत् 2503, चतुर्थ संस्करण। 15. तत्त्वार्थसूत्र, उमास्वामी, 7/9-12 व्रत : जैनाचार के आधार :: 371 For Private And Personal Use Only
SR No.020865
Book TitleJain Dharm Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2012
Total Pages876
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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