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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org निर्वाण की योग्यता आरोपित करते हैं । शुक्लध्यान के तृतीय एवं चतुर्थ चरण की अर्ध्यावली करके अ, इ, उ, ऋ, लृ पंच लघु-अक्षर उच्चारण- मात्र के समय में अघातिया कर्मों की 72 एवं 13 प्रकृतियों का क्षय बताकर बिम्ब को मन्त्रपूर्वक उठाकर कर्पूर प्रज्वलित कर निर्वाण का संकेत करते हैं । सौधर्म इन्द्र आनन्दकूट नाटक द्वारा मृत्यु- महोत्सव मनाता है। अग्निकुमार देव के मुकुटों से प्रज्वलित अग्नि से मायामयी शरीर का अन्तिम संस्कार करते हैं । निर्वाण - कल्याणक - पूजा करके विश्वशान्ति - हवन द्वारा समापन करते हैं। Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विश्वशान्ति कल्याण कामना महायज्ञ ( हवन) धार्मिक अनुष्ठान की सानन्द सफलता के लिए किये गए जाप के संकल्प की दशांश आहुतियाँ ” देकर विश्वशान्ति की कामना की जाती है । 93 क्रुद्धाषीर्विष- दष्ट- दुर्जय-विषज्वालावली- विक्रमो । विद्या- भेषज-मन्त्र-तोय हवनैर्याति प्रशान्तिं यथा ।। हवन का उद्देश्य सप्त परम स्थान की प्राप्ति भी है। सज्जातिः सद्गृहित्वं च पारिव्राज्यं सुरेन्द्रता । साम्राज्यं परमार्हन्त्यं परनिर्वाणमित्यपि । । सज्जाति, सद्गृहस्थ, संन्यास, सौधर्मपद, चक्रवर्तीपद, अर्हन्तपद, निर्वाण सप्त परम स्थान हैं। पीठिकामन्त्र, जातिमन्त्र, निस्तारकमन्त्र, ऋषिमन्त्र, सुरेन्द्रमन्त्र, परमराजमन्त्र एवं परमेष्ठी - मन्त्र, – इस प्रकार सात आहुति -मन्त्र हैं । वैज्ञानिक भी वनस्पतियों, जड़ीबूटियों एवं घी से किये हुए हवन को पर्यावरणशुद्धि का कारक स्वीकार करते हैं । वेदी प्रतिष्ठा - घटयात्रा द्वारा 81 मन्त्रों से वेदी शुद्धि; वेदी संस्कार विधि करके प्रतिष्ठा - स्थल से जुलूस पूर्वक जिनालय में बिम्बों को लाकर मूल वेदी में अचलयन्त्र, स्वस्तिक, पंचरत्न एवं पारद की स्थापना करके मन्त्रपूर्वक मूलनायक जिनबिम्ब को अचल रूप में विराजमान करके वेदी में वन्दनवार, सूत्रबन्धन, अष्टप्रातिहार्य, अष्टमंगल द्रव्य स्थापना, कलश एवं ध्वजा लगाकर वेदी प्रतिष्ठा विधि करते हैं । यह बिम्ब अब कभी भी वेदी से उठाया नहीं जाएगा। शेष बिम्बों को सामान्य रूप से सिंहासन में विराजमान करते हैं I शिखर-प्रतिष्ठा – जिनबिम्ब स्थापना के पश्चात् 21 कलशों द्वारा शिखर शुद्धि करके 7 नग वाले कलश के एक-एक नग की स्थापना एवं पूजा करते हुए अन्तिम कलश में आकाशयन्त्र डालकर स्थापित करते हैं, फिर मन्त्र - - पूर्वक ध्वजा का आरोहण करके मन्दिर में हवन-पूर्वक शिखर प्रतिष्ठा का कार्य पूर्ण करते हैं । 348 :: जैनधर्म परिचय For Private And Personal Use Only
SR No.020865
Book TitleJain Dharm Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2012
Total Pages876
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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