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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दान - तीर्थ का प्रवर्तन करता है तथा नियम से मोक्ष जाता है। आहार के पश्चात् पंचाश्चर्य होते हैं। गुणस्थान आरोहण - जिनबिम्ब की आहारचर्या पंचाश्चर्यपूर्वक कराकर वन में साधना हेतु स्थापित करके मातृका - यन्त्र, बोधि- समाधि यन्त्र, पुष्पों एवं अर्घ्यं द्वारा गुणस्थानआरोहण - संस्कार करते हैं । अधिवासना – तेरहवें गुणस्थान की विधि में परदे के भीतर अधिवासना क्रिया पूजा द्वारा आरम्भ करके जल की 108 मन्त्रों द्वारा धारा, चन्दन, अक्षत एवं पुष्पों का समर्पण करके मुनिराज द्वारा हैं अक्षर द्वारा तिलक न्यास, विभिन्न अंगों पर मन्त्रन्यास, पुष्पों द्वारा अधिवासना मन्त्र - संस्कार, स्वस्ति - मन्त्र - संस्कार, यवमाला, मदनफल एवं सप्तधान्य का संस्कार करें, नैवेद्य, दीप, धूप, फल एवं अर्घ्य का समर्पण करके कर्म-क्षय की शक्ति-आरोपण तत्पश्चात् परदा हटाकर मुखोद्घाटन - विधि करते हैं । द्रव्य नयनोन्मीलन- नयनोन्मीलन - यन्त्र स्थापित करके घृत, दुग्ध, मिश्री, चन्दन के द्वारा बिम्ब की आँखों में स्वर्णशलाका द्वारा नयनोन्मीलन (ज्ञान - चक्षु - खोलना) सभी बिम्बों में करते हैं । केवलज्ञान– आचार्य परमेष्ठी चन्द्र- कला, सूर्य- कला, प्राण-प्रतिष्ठा एवं सूरिमन्त्रों के संस्कार पूर्णत: एकान्त में करके अपनी तपः- शक्ति से बिम्बों में भगवत्सत्ता का आरोपण करते हैं । मन्त्र क्रिया पूर्ण होते ही 5 बत्ती वाला दीप प्रज्वलित करके शंखनाद, घण्टानाद, तुरही - नाद एवं सिंह - नाद करके केवलज्ञान की सूचना सभी को देते हैं। बिम्बों में अनन्त चतुष्टय, नवलब्धियों, केवलज्ञान के 10 अतिशयों एवं देवकृत 14 अतिशयों की स्थापना मन्त्रों द्वारा करके सिद्धयन्त्र एवं मोक्षमार्ग यन्त्र की स्थापना करते हैं 1 दिगम्बर परम्परा में नग्न दिगम्बर प्रतिमा की प्रतिष्ठा की परम्परा है। जबकि श्वेताम्बर परम्परा में राजसी - वेशभूषा - युक्त प्रतिमा प्रतिष्ठा के योग्य मानी जाती है। दिगम्बर परम्परा में प्रतिष्ठा - विधि में सूर्यमन्त्र की प्रधानता है । वहीं श्वेताम्बर परम्परा में अंजन - शलाका - विधि की मुख्यता है । समवसरण - 8 भूमि एवं 12 सभावाले समवसरण में चार बिम्बों की स्थापना चारों दिशाओं में करके आचार्य श्री गणधर रूप में देव, मनुष्य एवं तिर्यंचों को सात तत्त्व, नव पदार्थ, पंचास्तिकाय, श्रमण- श्रावक धर्म, दशलक्षण धर्म रूप उपदेश देते हैं 189 केवलज्ञान की पूजा के पश्चात् समवसरण (धर्म - सभा) का विसर्जन करते हैं । मोक्षकल्याणक निर्वाण - प्रातः शुभ लग्न में कैलाश पर्वत पर बिम्ब विराजमान करके पुष्पों द्वारा प्रतिष्ठा विधि एवं साहित्य :: 347 For Private And Personal Use Only
SR No.020865
Book TitleJain Dharm Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2012
Total Pages876
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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