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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir करता है। परिग्रह की होड़ में दिन-रात बेचैन रहता है। यह लोभ और तृष्णा ही हमारे दुःख का मूल कारण हैं। धन-सम्पत्ति से सुख की कामना करना ईंधन से आग बुझाने का प्रयास करने की तरह है। इसके विषय में कार्तिकेयानुप्रेक्षा में कहा गया है कि जो लोभकषाय को कम करके सन्तोष रूपी रसायन से सन्तुष्ट होता हुआ, सबको विनश्वर जानकर दुष्ट तृष्णा का घात करता है और अपनी आवश्यकता को जानकर धन, धान्य, सुवर्ण और क्षेत्र वगैरह का परिमाण करता है, उसके पाँचवाँ अणुव्रत होता है। ____ परिग्रहत्याग व्रत की पाँच भावनाएँ-मनोज्ञ और अमनोज्ञ पाँचों इन्द्रियों के विषय में राग-द्वेष का त्याग करना अपरिग्रहव्रत की पाँच भावनाएँ हैं अर्थात् अपने लिए इष्ट व अनिष्ट ऐसे पाँच इन्द्रियों के विषयों के प्रति राग और द्वेष का त्याग करना इस व्रत की दृढ़ता के लिए कारण है। यह मानव इष्ट पदार्थों के प्रति अनुरक्त होता है और अनिष्ट पदार्थों के प्रति द्वेष करता है। इस प्रकार आसक्ति और द्वेष इन दोनों के त्याग से परिग्रहों को सीमित करने की भावना होती है और अपरिग्रह व्रत की रक्षा होती है। व्रती के लिए सदा व्रत की रक्षा के लिए इन भावनाओं का चिन्तवन करते रहना चाहिए। उपर्युक्त कथन को 'सर्वार्थसिद्धि' में उदाहरण देकर इस प्रकार समझाया गया है-जिस प्रकार पक्षी मांस के टुकड़े को प्राप्त करके उसको चाहने वाले दूसरे पक्षियों के द्वारा पराभूत होता है, उसी प्रकार परिग्रह वाला भी इसी लोक में उसको चाहने वाले चोर आदि के द्वारा पराभूत होता है। उसी के अर्जन, रक्षण और नाश से होने वाले अनेक दोषों को प्राप्त होता है, जैसे ईंधन से अग्नि की तृप्ति नहीं होती, ठीक वही स्थिति लोभ की है। लोभातिरेक के कारण ही कार्य और अकार्य का विवेक नहीं करता, परलोक में अशुभ गति को प्राप्त होता है तथा यह लोभी है, इस प्रकार से इसका तिरस्कार भी होता है। इसलिए परिग्रह का त्याग श्रेयस्कर है। परिग्रहपरिमाण व्रत के पाँच अतिचार-खेत, मकान, चाँदी, सोना, धन, धान्य, दासी, दास, कपड़े और बर्तन इन परिग्रहों का परिमाण करके, उनका उल्लंघन करना परिग्रह परिमाणव्रत के अतिचार हैं। जो जमीन खेती बाड़ी के काम आती है, वह क्षेत्र कहलाती है और घर आदि को वास्तु कहते हैं। इनका जितना प्रमाण निश्चित किया हो, लोभ में आकर प्रमाण का उल्लंघन करना क्षेत्र-वास्तुप्रमाणातिक्रम है। व्रत लेते समय चाँदी और सोने का जो प्रमाण निश्चित किया हो उसका उल्लंघन करना हिरण्य-सुवर्णप्रमाणातिक्रम है। गाय, भैंस आदि पशुधन और चावल, गेहूँ आदि धान्य इनके स्व-कृत-प्रमाण का उल्लंघन करना धन-धान्यप्रमाणातिक्रम है। जिसके यहाँ जितने नौकर-चाकर हों, उनकी संख्या बढ़ाने की भावना रखना और उनके साथ मानवोचित व्यवहार न करना, उन्हें अपनी जायदाद समझना दासी-दासप्रमाणातिक्रम श्रावकाचार :: 323 For Private And Personal Use Only
SR No.020865
Book TitleJain Dharm Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2012
Total Pages876
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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