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करने वाला जगत में कोई नहीं है।
संसार परिपाटी को छेदकर उससे बाहर निकलना कोई अशक्य-अनुष्ठान नहीं है। अनुकूल निमित्त जुटाकर अनन्त प्राणी इस अपार-पारावार को पार करके लोकाग्र में विराजमान हो चुके हैं, आज भी हो रहे हैं, उनका उदाहरण मेरे सामने है। उनका अनुसरण करने पर उन निमित्तों के सहकार से मुझे भी मेरा गन्तव्य प्राप्त होगा। मैं अनन्त शक्तिशाली, ज्ञानपुंज, चेतन आत्मा हूँ और अपनी भूलवश जड़ पुद्गल से प्रभावित हुआ लोक में भटक रहा हूँ। पुद्गल के प्रभाव से मुक्त होना ही मेरी मुक्ति है।
जीव और कर्म सम्बन्ध :: 277
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