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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वाले नय को एवंभूतनय कहते हैं। जैसे—'गौ' जिस समय चलती है, उसी समय गौ है बैठने और सोने की अवस्था में नहीं । निष्कर्ष वस्तु के आंशिक चिन्तन को सत्य मान लेना एवं अन्य अंशों की उपेक्षा करना सत्य की असमग्रता या एकान्तिकता का बोध कराती है। नयदृष्टि समग्र सत्यांशों में सत्यांश समझती है। दार्शनिक पृष्ठभूमि में जिसे प्रमाण के अंश के रूप में जाना जाता है । नय परस्पर सापेक्ष होकर ही व्यवहार में साधक हो सकते हैं । नैगम, संग्रह आदि नय पूर्व की अपेक्षा उत्तरोत्तर अनुकूल, सूक्ष्म एवं अल्प-विषय वाले हैं। पूर्व - पूर्व का नय उत्तरोत्तर नय का कारण है। परस्पर सापेक्ष होकर ये सप्तनय तत्त्व के विवेचन में सहायक हैं तथा गौण - मुख्य विवक्षा से परस्पर-सापेक्ष होकर सम्यग्दर्शन के कारण बनते हैं और पुरुषार्थक्रिया में समर्थ होते हैं । निरपेक्ष - नय सम्यग्ज्ञान की उत्पत्ति नहीं कर सकते । प्रमाण की तरह नय भी ज्ञान की ही वृत्तियाँ है । जो वक्ता के अभिप्राय के अनुसार प्रमाण से ही आंशिक रूप में प्रस्फुटित होती हैं । परन्तु नय न पूर्ण प्रमाण है न अप्रमाण, वरन् प्रमाण का अंश है। नयवाद एक ऐसा दृष्टिकोण है, जो वैचारिकद्वन्द्वको परिसमाप्त करता है । वैचारिक एकांगी दुराग्रह विश्व की मूल - समस्याओं की जड़ है। यदि व्यक्ति दूसरों के विचारों का आदर करे एवं उसके विचारों के प्रति सहिष्णु रहे, तब कभी भी टकराव की स्थिति उत्पन्न नहीं हो सकती । वस्तु-स्वरूप का वास्तविक परिज्ञान नय के बिना नहीं हो सकता और वस्तु-रूप के ज्ञान हुए बिना रत्नत्रय की प्राप्ति नहीं हो सकती । जब तक रत्नत्रय की प्राप्ति नहीं होगी, तब-तक मुक्ति का मार्ग अवरुद्ध ही रहेगा । इसलिए नय-प्रक्रिया को सूक्ष्मता से समझना आवश्यक है । निक्षेप का स्वरूप एवं उपयोगिता जीवादि तत्त्वों के संव्यवहार के लिए निक्षेप प्रक्रिया की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। आगमों में अर्थ-निरूपण की यही प्राचीन पद्धति रही है । शब्दाद्वैतवादियों तथा शब्द का विवक्षित अर्थ न लेकर स्वार्थ के लिए अन्यार्थ ग्रहण करने वालों के निराकरण के लिए निक्षेप - विधि की अत्यन्त सार्थकता है । किस शब्द का क्या अर्थ है, यह निक्षेपविधि द्वारा विस्तार से बताया जाता है। वक्ता या श्रोता को शब्द के विवक्षित अर्थ के अतिरिक्त अनपेक्षित अर्थ से बचाने के लिए भी निक्षेपों की उपादेयता है। वस्तुतः इस प्रक्रिया से शब्द की भ्रान्ति दूर होती है । 'निक्षेप' शब्द 'नि' उपसर्ग पूर्वक 'क्षिप्' धातु से निष्पन्न है । जिसका अर्थ न्यास या रखना होता है। धवलाकार ने 'न्यास' का अर्थ उपाय किया है और लिखा है कि 236 :: जैनधर्म परिचय For Private And Personal Use Only
SR No.020865
Book TitleJain Dharm Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2012
Total Pages876
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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