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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चाहिए कि मैं तो ऐसे मानता हूँ, परन्तु इस विषय पर अन्यत्र भी पूँछ लेना। (2) स्याद्वाद, अनेकान्तवाद, सापेक्षवाद, (3) पृथक् अर्थनिर्णयवाद, (4) सम्यक् प्रकार से अर्थों का नय, निक्षेप आदि से विभाग विश्लेषण करके पृथक् करके कहें। जैसे द्रव्यार्थिक नय से नित्यवाद और पर्यायार्थिक नय से अनित्यवाद को । इन अर्थों के आधार पर हम कह सकते हैं कि जैनशास्त्रकारों के मत से विभज्यवाद का अर्थ अनेकान्तवाद या नयवाद या अपेक्षावाद या पृथक्करण करके, विभाजन करके किसी तत्त्व के विवेचन का वाद है। अपेक्षाभेद से स्यात् शब्दांकित प्रयोग भी प्राप्त होता है । अतः आगमकाल में विभज्यवाद या अनेकान्तवाद को स्याद्वाद भी कह सकते हैं । भगवान बुद्ध की तरह भगवान महावीर ने भी प्रश्नों के उत्तर में विभज्यवाद का प्रचुर मात्रा में प्रयोग किया है। ऐसे कुछ प्रश्नोत्तर नीचे दिए जा रहे हैं -- गौतम – यदि कोई ऐसा कहे कि मैं सर्व प्राण, सर्वभूत, सर्व जीव, सर्व सत्त्व की हिंसा का प्रत्याख्यान करता हूँ, तो क्या उसका वह प्रत्याख्यान सुप्रत्याख्यान है या दुष्प्रत्याख्यान है ? भगवान महावीर - स्यात् सुप्रत्याख्यान है और स्यात् दुष्प्रत्याख्यान है । गौतम - उसका क्या कारण है ? भगवान महावीर - जिसको यह भान नहीं कि ये जीव है और ये अजीव है, ये त्रस है और ये स्थावर है, उसका वैसा प्रत्याख्यान दुष्प्रत्याख्यान है। वह मृषावादी है, किन्तु जो यह जानता है कि ये जीव है और ये अजीव है, वे त्रस हैं और ये स्थावर हैं, उसका वैसा प्रत्याख्यान सुप्रत्याख्यान है, वह सत्यवादी है । (भगवती 21.7, उ.2, सू-2901) जयन्ती - भंते सोना अच्छा है या जागना ? - भगवान महावीर – जयन्ती ! कुछ जीवों का सोना अच्छा और कुछ जीवों का जागना अच्छा लगता है। जयन्ती - उसका क्या कारण ? भगवान महावीर - जो जीव अधर्मी हैं, वे सोते रहें, वही अच्छा है, क्योंकि जब वे सोते होंगे, तब अनेक जीवों को पीड़ा नहीं देंगे, किन्तु जो जीव धार्मिक हैं, उनका तो जागना ही अच्छा है, क्योंकि वे अनेक जीवों को सुख देते हैं । जयन्ती — भंते! बलवान् होना अच्छा है या दुर्बल होना ? भगवान महावीर - जयन्ती ! कुछ जीवों का बलवान होना अच्छा है और कुछ का दुर्बल होना अच्छा है। जयन्ती - इसका क्या कारण ? भगवान महावीर - जो जीव अधार्मिक होते हैं, उनका दुर्बल होना अच्छा है, क्योंकि वे बलवान हों, तो अनेक जीवों को दुःख देंगे; किन्तु जो जीव धार्मिक हैं, उनका सबल होना अच्छा है, क्योंकि उनके सबल होने से अधिक जीवों को सुख पहुँचाएँगे । 188 :: जैनधर्म परिचय For Private And Personal Use Only
SR No.020865
Book TitleJain Dharm Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2012
Total Pages876
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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