SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 150
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एवं भविष्य में राजस्थानी को संविधान में क्षेत्रीय भाषा के रूप में स्थान दिये जाने पर बल दिया। राजस्थान के अत्यन्त महत्त्वपूर्ण एवं प्रिय क्षेत्र सिरोही' के विभाजन पर उन्होंने खेद जताया एवं बम्बई में उसको विलीन करने को भारी भूल करार देते हुए सिरोही को वापस राजस्थान में मिलाने की माँग रखी। उन्होंने यह भी कहा कि हमने एक बेहतर एवं अच्छा संविधान बनाने का सम्पूर्ण प्रयास किया है और अब हमारा यह कर्तव्य है कि अपने क्षेत्रों एवं आंचलिक तथा ग्रामीण हिस्सों में जाकर जन-साधारण को संविधान की उपयोगिता एवं क्षमता से परिचित करवाएँ। 9 अगस्त, 1997 को स्वतन्त्रता की स्वर्ण जयन्ती पर संविधान-निर्मात्री-सभा के अन्य सदस्यों के साथ सम्मानित होने वाले श्री कुसुमकान्त जैन झाबुआ एवं रतलाम आदि रियासतों के प्रतिनिधि के रूप में सभा के सदस्य रहे। कच्छ प्रान्त की ओर से श्री भवानी या भवन जी अर्जुन खीमजी व्यापारी वर्ग के प्रतिनिधि के रूप में सभा के सदस्य रहे थे। संविधान निर्मात्री-सभा के सदस्य रूप में जैनधर्मानुयायियों ने जनप्रतिनिधि होकर अपनी अमूल्य छाप छोड़ी है। कालान्तर में संविधान सभा के अन्तिम दिन 24 जनवरी, 1950 को सभी सदस्यों ने प्रारूप पर हस्ताक्षर किए। संविधान की तीन प्रतियाँ 2 अंग्रेजी तथा एक हिन्दी में बनायी गई थीं। संविधान के प्रथम पृष्ठ पर मोहनजोदड़ो में प्राप्त उस सील को दर्शाया गया है, जिस पर बैल अंकित है। पृष्ठ 63 पर भगवान महावीर का चित्र अंकित है और उसके नीचे सम्मानपूर्वक लिखा है-"भारत को अहिंसा परमोधर्मः' की संस्कृति प्रदान करने वाला जैनधर्म देश में आध्यात्मिक जागरण का एक और प्रवाह है, जिसने जीवन में आचार को सर्वाधिक महत्त्व दिया। महावीर की अहिंसा के अमोघ अस्त्र को महात्मा गाँधी ने अपनाया और शक्तिशाली ब्रिटिश साम्राज्य की दासता से मुक्त कराया।" उपरोक्त प्रशस्ति इस तथ्य को प्रकाशित करती है कि जैनधर्म के सिद्धान्तों का भारत की स्वतन्त्रता से लेकर संविधान निर्माण तक अमूल्य योगदान रहा है। जैन प्रतिनिधियों ने कहीं भी जन-हित, देश-हित एवं राष्ट्र-हित से परे अपना कोई वक्तव्य, सुझाव या सन्देश-निर्मात्री-सभा के सदस्य के रूप में नहीं दिया। यही कारण रहा कि उनके द्वारा दिये गए सुझावों को संविधान सभा में स्वीकारा गया एवं उन पर अमल भी किया गया। अछूतोद्धार, शैक्षिक एवं चिकित्सा सम्बन्धी सुविधाओं की सबके लिए समान रूप से उपलब्धि, राज्यों के विलय सम्बन्धी मुद्दों पर सहमति इत्यादि कितनी ही संवैधानिक उपलब्धियाँ इन्हीं प्रतिनिधियों की देन रही हैं। संविधान- निर्माण में जैनधर्मानुयायियों का होना एवं उनकी सक्रिय भूमिका सदैव प्रकाशित रहेगी, इसमें दो राय नहीं। 142 :: जैनधर्म परिचय For Private And Personal Use Only
SR No.020865
Book TitleJain Dharm Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2012
Total Pages876
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy