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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उल्लेख मिलता है। शैक्षिक संस्थानों, चिकित्सालयों एवं डिस्पैन्सरियों को नैतिक, मानसिक एवं शारीरिक विकास के लिए अत्यन्त आवश्यक मानते हुए उन्होंने सुझाव दिया कि इस प्रकार का कोई भी संस्थान, जिसे सरकारी सहायता मिलती हो अथवा सरकार द्वारा निर्मित हों, वे धर्म, जाति, सम्प्रदाय एवं लिंग से परे प्रत्येक के लिए समान रूप से उपलब्ध होने चाहिए। देश में आपातकाल की घोषणा के सम्बन्ध में अपने विचार रखते हुए उन्होंने आपातकाल की घोषणा का अधिकार न्यायपालिका को देने का सुझाव दिया; क्योंकि उनका विचार था, अवसर पड़ने पर कार्यपालिका कठोरता से पेश आ सकती है। सामान्य चर्चा के दौरान मई, 1947 को उन्होंने सन् 1937 में बने भारत सरकार के उस नियम का उल्लेख किया, जिसके तहत कोई भी चल या अचल सम्पत्ति जन-हित में सरकार द्वारा तब तक अधिगृहीत नहीं की जा सकती, जब तक कानून द्वारा उसका मुआवजा न दिया जाए। श्री जैन ने कहा कि देश में जमींदारी-प्रथा का उन्मूलन करने हेतु सतत् प्रयास किए जा रहे हैं। मुआवजा कितना हो- यह एक अहम-सवाल है तथा यह भी जरूरी नहीं कि राज्य सरकार आर्थिक रूप से मुआवजा देने में सक्षम हो, ऐसे में जमींदारी-प्रथा के उन्मूलन हेतु वर्तमान नियम में बदलाव की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि संविधान में मुलाधिकारों का प्रावधान कमजोर एवं असहाय वर्ग के संरक्षण हेतु रखा गया है, वर्तमान भूमि अधिग्रहण सम्बन्धी कानून इसके ठीक विपरीत एक संभ्रान्त वर्ग को संरक्षण देता है तथा एक विशाल वर्ग के सामाजिक न्याय के अधिकार को छीनता है। उन्होंने मत स्थानान्तरण (Transfer of Vote) का विरोध किया तथा इस प्रणाली को विभाजन की मानसिकता का परिपोषक एवं धर्म-जाति के आधार पर दूषित वातावरण का जनक बताते हुए इसके पक्ष में प्रस्तुत संशोधन का विरोध किया। 15 नवम्बर, 1949 को उन्होंने संसद द्वारा ऐसा कानून बनाये जाने के सन्दर्भ में चर्चा की, जिसके द्वारा किसी व्यक्ति को तीन माह से अधिक कैद में रखे जाने का निर्णय लिया जाना निश्चित हो सके। राजस्थान प्रदेश के प्रतिनिधि के रूप में श्री बलवन्त सिंह मेहता ने 23 नवम्बर, 1949 को सभी में अपना प्रथम वक्तव्य देते हुए कहा कि सत्यरूप में हमारे द्वारा बनाया गया संवैधानिक प्रारूप अत्यधिक विशाल है। यह एक लोकतन्त्रात्मक संविधान है। x x संविधान सतत प्रवाहशील है एवं समयानुसार संशोधनों के लिए प्रवृत है x x हमारे राष्ट्रपिता ने हमें राजनैतिक स्वतन्त्रता दिलायी है x x किन्तु आर्थिक स्वतन्त्रता हमें अभी प्राप्त करनी है।x x x हमारे संविधान द्वारा छुआछूत (untouchability) के कलंक को समाप्त किया गया है। इसी सन्दर्भ को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने राजस्थान में हरिजन एवं पिछड़े हुए तबके के लोगों की बहुसंख्या से सभा को अवगत कराते हुए राजस्थान के लिए एक जन-कल्याण-मन्त्री की माँग की। श्री मेहता ने राजस्थानी भाषा को संवैधानिक सम्मान न दिये जाने पर रोष व्यक्त किया संविधान पर जैन धर्मावलम्बियों का प्रभाव :: 141 For Private And Personal Use Only
SR No.020865
Book TitleJain Dharm Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2012
Total Pages876
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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