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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 1900 ई. से अनवरत प्रकाशित होने वाला 'जैन मित्र' यद्यपि धार्मिक पत्र है, किन्तु उसमें राष्ट्रीय महत्त्व के समाचार न सिर्फ सुर्खियों में प्रकाशित हुए हैं, अपितु उन पर निर्भीक टिप्पणियाँ भी लिखी गयी हैं। इसके सम्पादक रहे पं. परमेष्ठीदास राष्ट्रीय आन्दोलन में अनेक बार जेल यात्रा कर चुके थे। पत्र के 10 जनवरी, 1927 के अंक में प्रकाशित राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत पंक्तियाँ द्रष्टव्य हैं 'मेरी जान रहे सर न रहे, सामान रहे या साज रहे। फकत हिन्द मेरा आजाद रहे, माता के सर पर ताज रहे।। ये किसान मेरे खुशहाल रहें, पूरी होबे फसल सुख काज रहे। मेरे भाई वतन पे निसार रहे, मेरी माँ बहनों की लाज रहे।। मेरी गाय रहे मेरे बैल रहें, घर-घर में भरा सब नाज रहे। गारे (खद्दर) का कफन हो मुझपे पड़ा, वन्दे मातरम् आबाद रहे।।' इसी पत्र के 6 जनवरी, 1907 के अंक में विविध समाचार के अन्तर्गत सूरत में कांग्रेस के अधिवेशन का वर्णन विस्तार से छपा था। स्वदेशी की भावना के प्रचार में तो पत्र ने अपनी विशिष्ट भूमिका निभाई थी। अधिकांश अंकों में एतद्विषयक सामग्री प्रकाशित होती थी। 15 नवम्बर, 1923 के अंक में प्रकाशित स्वदेशी का विज्ञापन द्रष्टव्य है 'अगर आप सच्चे अहिंसा व्रत के पालक हैं अगर आप सच्चे स्वदेश भक्त हैं तो विनोद मिल्स उज्जैन का शुद्ध-जिसमें जानवरों की चरबी नहीं लगाई जाती स्वदेशी-जो देशी कारीगर, रुई व देश के धन से बना है, कपड़ा पहनिये और धन व धर्म बचाईये। पता-विनोद मिल्स, उज्जैन।' एक अन्य विज्ञापन भी देखें 'भारतीय कारीगरी की मदद करोजहाँ में गर वतन की लाज रखनी हो तो लाजिम है। स्वदेशी वस्त्र पर हर एक बशर सौजां से शैदा हो।।" 'जैन मित्र' के नियमित प्रकाशन के सन्दर्भ में तीर्थंकर (अगस्त-सितम्बर, 1977, 134 :: जैनधर्म परिचय For Private And Personal Use Only
SR No.020865
Book TitleJain Dharm Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2012
Total Pages876
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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