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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्वतन्त्रता संग्राम में जेल यात्रा करने वाले उत्तर प्रदेश एवं उत्तरांचल के प्रमुख जैन : उत्तर प्रदेश और उत्तरांचल राजनैतिक चेतना सम्पन्न राज्य रहे हैं। उत्तर प्रदेश के ही पहाड़ी हिस्से को कर अलग उत्तरांचल राज्य बनाया गया है। जनसंख्या की दृष्टि से उत्तर प्रदेश भारत का सबसे बड़ा राज्य रहा है, इसलिए केन्द्रीय राजनीति में इसकी महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। उत्तर प्रदेश, उत्तरांचल के ललितपुर, झाँसी, मेरठ, बड़ौत, मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, बिजनौर, देहरादून, कानपुर, फिरोजाबाद, आगरा आदि शहरों में बहुतायत से जैन समुदाय के लोग निवास करते हैं। पश्चिमी उ.प्र. के जैन उद्योग और व्यापार में अग्रणी हैं। बुन्देलखंड तथा मथुरा में जैन संस्कृति के प्राचीनतम अवशेष मिले हैं। जैन सांस्कृतिक दृष्टि से बुन्देलखंड का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान है। उत्तर प्रदेश और उत्तरांचल के अनेक जैन महानुभावों ने आन्दोलन में भाग लिया था और जेल यात्राएँ की थीं। आगरा के सेठ अचल सिंह पं. जवाहरलाल नेहरू के विश्वासपात्र व्यक्तियों में थे। मेरठ के श्री अजित प्रसाद जैन भारतीय संविधान सभा के सदस्य रहे थे। आगरा की श्रीमती अंगूरी देवी क्रान्तिकारी महिला के रूप में विख्यात थीं। ललितपुर के लगभग पच्चीस जैन जेल यात्री रहे हैं। अनेक महिलाएँ भी यहाँ से जेल गयीं। पं. फूलचन्द्र सिद्धान्तशास्त्री ने स्वतन्त्रता आन्दोलन की सहभागिता के साथ जैन आगम ग्रन्थों का अनुवाद कर जैन संस्कृति को भी महनीय योगदान दिया है। बिजनौर के बाबू रतनलाल ने जेल में ही 'आत्म रहस्य' नामक पुस्तक लिखी थी। मडावरा के सुप्रसिद्ध सन्त तथा 'जैन जगत के गाँधी' नाम से विख्यात क्षुल्लक गणेश प्रसाद 'वर्णी' ने आजाद हिन्द फौज की सहायतार्थ अपनी दो चादरों में से एक चादर दान में दे दी थी, जो बाद में नीलाम करने पर उस सस्ते जमाने में भी तीन हजार रु. में बिकी थी। यहाँ के अनेक कवियों ने अपनी कविताओं के माध्यम से आन्दोलन में प्राण फूंके थे, इनमें ललितपुर के श्री हुकुमचन्द बुखारिया 'तन्मय' एवं बड़ौत के श्री शान्ति स्वरूप 'कुसुम' के नाम विशेष उल्लेखनीय हैं। 1942 के आन्दोलन में वाराणसी के श्री स्यादवाद महाविद्यालय के सभी छात्र क्रान्तिकारी हो गये थे। कानपुर के वैद्य कन्हैया लाल का पूरा परिवार ही जेल यात्री रहा है। सहारनपुर के भाई हंसकुमार के सन्दर्भ में सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर' ने लिखा है "17-18 साल की उम्र और पिद्दी-सा शरीर। 1930 में रुड़की छावनी में फौजों को भड़काने के अपराध में उन्हें 4 साल की सख्त कैद की सजा सुनाई गयी तो जिले भर में सन्नाटा छा गया, पर वे हँसते हुए अपनी बैरक में लौटे और उस रात में इतना बढिया नाचे कि कैदी साथियों को वह आज भी याद है।..." 122 :: जैनधर्म परिचय For Private And Personal Use Only
SR No.020865
Book TitleJain Dharm Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2012
Total Pages876
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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