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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir का सिन्दूर पुंछ गया। हिन्दू, मुस्लिम, जैन, सिख आदि सभी जातियों व सभी धर्मों के देशभक्तों ने इस समर में अपना योगदान दिया था। अंग्रेजी सरकार को जिस व्यक्ति के सन्दर्भ में थोड़ा-सा भी यह ज्ञात हुआ कि इसका सम्बन्ध विद्रोह से है, उसे सरेआम फाँसी पर लटका दिया गया। अनेक देशभक्तों को सरेआम कोड़े लगाए गये, तो अनेक के परिवार नष्ट कर दिए गये, सम्पत्तियाँ लूट ली गयीं, पर ये देशभक्त झुके नहीं। ___ 1857 की क्रांति में हाँसी (हरियाणा) के लाला हुकुम चन्द जैन एवं उनके भतीजे फकीर चन्द जैन तथा ग्वालियर (म.प्र.) के सिन्धिया परिवार के खजाने 'गंगाजली' के खजांची श्री अमरचन्द बांठिया ने अपना बलिदान देकर आजादी का मार्ग प्रशस्त किया था। __अमर शहीद अमरचन्द बांठिया के पूर्वज राजस्थान से आकर ग्वालियर (म.प्र.) में बस गये थे। सिंधिया नरेश के खजाने (गंगाजली) में अटूट धन था जिसका प्रबन्ध बांठिया जी की देखरेख में होता था। राष्ट्रीय अभिलेखागार, नयी दिल्ली एवं राजकीय अभिलेखागार, भोपाल में उपलब्ध दस्तावेजों के अनसार 1857 में क्रान्तिकारी सेना की स्थिति राशन पानी के अभाव में बड़ी दयनीय थी। महारानी लक्ष्मीबाई की सेना को महीनों से वेतन नहीं मिला था। 5 जून, 1858 को अमरचन्द ने देशभक्ति से प्रेरित हो ग्वालियर का खजाना खोल दिया जिससे क्रान्तिकारी नेताओं ने अपनी सेनाओं को वेतन आदि वितरित किया। इसी बीच अंग्रेजों ने ग्वालियर पर अधिकार कर लिया, एक दिखावटी कार्यवाही के बाद 22 जून, 1858 को राजद्रोह के अपराध में लश्कर (ग्वालियर) के भीड़ भरे सर्राफा बाजार में बिग्रेडियर नेपियर द्वारा नीम के पेड़ से लटकाकर बांठिया जी को फाँसी दे दी गयी। कठोर चेतावनी के रूप में उनका शव तीन दिन तक लटकाये रखा गया। फाँसी स्थल पर बांठिया जी का स्टेच्यू स्थापित किया गया है। ___ अमर शहीद लाला हुकुमचन्द्र का जन्म 1816 में हाँसी (हिसार-हरियाणा) में प्रसिद्ध कानूनगो परिवार में हुआ। गणित और फारसी में उनकी विशेष रुचि थी। मुगल बादशाह बहादुरशाह जफर से उनके बहुत अच्छे सम्बन्ध थे। 1857 के प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम में हुकुमचन्द जी की देशप्रेम की भावना अँगड़ाई लेने लगी। उन्होंने अपने मित्र मिर्जा मुनीर बेग के साथ गुप्त रूप से एक पत्र फारसी भाषा में मुगल सम्राट को लिखा जिसमें युद्ध-सामग्री की माँग की गयी थी। यह सामग्री नहीं आ सकी। इसी बीच अंग्रेजों ने दिल्ली पर अधिकार कर मुगल सम्राट को बन्दी बना लिया। 15 नवम्बर, 1857 को सम्राट की व्यक्तिगत फाइलों की जाँच के दौरान यह पत्र अंग्रेजों के हाथ लग गया। पत्र के आधार पर एक दिखावटी अदालती कार्यवाही के बाद हुकुमचन्द जैन और मिर्जा मुनीर बेग को 19 जनवरी, 1858 को हुकुमचन्द जैन के मकान के 118 :: जैनधर्म परिचय For Private And Personal Use Only
SR No.020865
Book TitleJain Dharm Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2012
Total Pages876
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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