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अन्य वीतरागी मुनियों को केवलज्ञान और निर्वाण-प्राप्ति हुई। एक अन्य क्षेत्र बटेश्वर है। यहीं पर संवत् 1838 में निर्मित एक विशाल मन्दिर में महोबा से लाई गयी तीर्थंकर अजितनाथ की कृष्ण पाषाण की एक भव्य सातिशय पद्मासन मूर्ति विराजमान है।
कल्याणक क्षेत्र
अयोध्या ___ अयोध्या पूर्वी उत्तर प्रदेश के फैजाबाद जिले में अवस्थित प्राचीन नगरी है। 'आदिपुराण' में उल्लेख है कि यह संसार की आदि नगरी थी। इस नगरी की महिमा का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि 'जिस नगरी की रचना करने वाले स्वर्ग के देव हों, अधिकारी सूत्रधार इन्द्र हों, उसकी सुन्दरता का भला क्या कहना!' __ जैन मान्यता में इसे शाश्वत नगरी कहा गया है। प्रारम्भ से ही यह जैनधर्म की केन्द्र रही है। प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव के गर्भ और जन्म कल्याणक तो यहाँ हुए ही हैं, दूसरे तीर्थंकर अजितनाथ, चौथे तीर्थंकर अभिनन्दननाथ, पाँचवें तीर्थंकर सुमतिनाथ तथा चौदहवें तीर्थंकर अनन्तनाथ-इन चारों तीर्थंकर के गर्भ, जन्म, दीक्षा और केवलज्ञान कल्याणक, इस प्रकार अठारह कल्याणक मनाने का सौभाग्य इस नगरी को प्राप्त हुआ है। यही कारण है कि इसे तीर्थराज भी कहा गया है।
ऋषभदेव ने अपने राज्यकाल में यहीं से कर्मयुग का आरम्भ किया और छह कर्मों (असि, मसि, कृषि, विद्या, शिल्प और वाणिज्य) का ज्ञान समाज को दिया। उनकी पुत्री ब्राह्मी और सुन्दरी ने पिता से प्रेरणा पाकर क्रमशः लिपि और अंक विद्या का आविष्कार किया। समाज व्यवस्था के लिए वर्ण व्यवस्था रची। राजनीतिक व्यवस्था के लिए पुर, ग्राम, नगर, जनपद आदि की व्यवस्था की। और फिर अन्त में पुत्रों को राजपाट सौंपकर निर्ग्रन्थ दिगम्बर मुनिदीक्षा धारण कर धर्ममार्ग को प्रशस्त करने का कार्य किया। कर्मयुग के आरम्भ में किया गया यह कार्य एक बड़ा साहसिक एवं विवेकपूर्ण कदम था।
ऋषभदेव के ज्येष्ठ पुत्र चक्रवर्ती भरत ने सार्वभौम साम्राज्य की स्थापना कर यहीं से सम्पूर्ण शासन किया। मर्यादापुरुषोत्तम श्रीरामचन्द्र के कारण इस नगरी को विशेष गौरव मिला है।
अयोध्या को लेकर कितनी ही पौराणिक और ऐतिहासिक घटनाएँ व किंवदन्तियाँ जुड़ी हुई हैं। ___ अयोध्या में नगर के भीतर दो जैन मन्दिर और पाँच टोंकें हैं। भगवान आदिनाथ की टोंक उनकी जन्मभूमि पर है। 'हनुमानगढ़ी' नाम से प्रसिद्ध हिन्दू मन्दिर यहीं पर है। वर्तमान में इसमें हनुमान की माता अंजना की मूर्ति विराजमान है।
जैनतीर्थ :: 103
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