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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जलमन्दिर के सामने एक समवसरण मन्दिर है, जिसमें भगवान के चरण विराजमान हैं। वर्तमान में वहीं श्वेताम्बरों का भी समवसरण मन्दिर है। जलमन्दिर के कुछ ही दूरी पर पावापुरी सिद्धक्षेत्र दिगम्बर कार्यालय है। यहीं पर सात दिगम्बर जैन मन्दिरों का समूह है। इनमें बड़े मन्दिर में भगवान महावीर की मूलनायक साढ़े तीन फुट श्वेत वर्ण की प्रतिमा वि. सं. 1950 में प्रतिष्ठित की गयी। पावापुरी में भगवान महावीर के निर्वाण उत्सव पर कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी से कार्तिक शुक्ल एकम् तक एक विशाल मेला लगता है। मथुरा हस्तिनापुर की तरह मथुरा भी प्राचीन काल से भारत का महान जैन तीर्थक्षेत्र रहा है। यह शूरसेन जनपद की राजधानी थी। हिन्दू अनुश्रुति के अनुसार, मथुरा की गणना सप्तमहापुरियों में की जाती है। नारायण श्रीकृष्ण की जन्मभूमि एवं लीलाभूमि होने के कारण प्रतिवर्ष यहाँ देश-विदेश के लाखों यात्री आते हैं। यहाँ नगर के समीप ही चौरासी मथुरा सिद्धक्षेत्र है। केवलज्ञान प्राप्ति के बाद अन्तिम केवली जम्बूस्वामी कई बार मथुरा पधारे और धर्मोपदेश दिया। अन्त में यहाँ के जम्बूवन में उनका निर्वाण हुआ, जिससे यह स्थान सिद्धक्षेत्र के नाम से ख्यात हुआ। कुछ समय पश्चात् विद्युच्चर मुनिराज के प्रभव आदि पाँच सौ मुनियों के साथ यहाँ के वन में पधारे और घोर तपस्या की। इसप्रकार प्रचलित मान्यतानुसार यह स्थान जम्बूस्वामी के निर्वाण और मुनिराजों के उपसर्ग एवं तपश्चरण की कथा के कारण सर्वविश्रुत है। पुराण-साहित्य में बीसवें तीर्थंकर मुनिसुव्रतनाथ के तीर्थ में और उन्हीं के वंश में उत्पन्न सत्यवादी राजा वसु की कथा प्रचलित है। एक बार झूठ के समर्थन में उसे नरक की यातनाएँ भोगनी पड़ीं। कंस की राजधानी के कारागृह में कृष्ण के जन्म की कथा भी सर्वविख्यात है। महाभारतकालीन हस्तिनापुर से मथुरा और यहाँ के यादव वंश का बहुत सम्पर्क रहा। मथुरा के समीप ही कंकाली टीले के उत्खनन से शक-कुषाण काल (लगभग ई.पू. प्रथम शती से दूसरी शती तक) की हिन्दू, जैन और बौद्ध धर्मों की मूर्तियाँ, मन्दिर और विपुल पुरातात्त्विक सामग्री प्राप्त हुई है। यहाँ जैन पुरातत्त्व की जो सामग्री मिली है, उसमें अनेक स्तूप, मूर्तियाँ, सर्वतोभद्र प्रतिमाएँ, शिलालेख, आयागपट्ट, धर्मचक्र, तोरणस्तम्भ, वेदिकाएँ एवं अन्य बहुमूल्य कलाकृतियाँ हैं। अभिलेखों और प्राचीन साहित्य से स्पष्ट ज्ञात होता है कि ईसा के कई सौ वर्ष पूर्व से ग्यारहवीं-बारहवीं शती तक यह जैनों का केन्द्र रहा है। मथुरा में एक अन्य केन्द्र सप्तर्षि-टीला है। मथुरा के पास ही शौरीपुर प्राचीन जैनक्षेत्र है, जहाँ तीर्थंकर नेमिनाथ के गर्भ और जन्मकल्याणक हुए। इनके अतिरिक्त यहाँ पर कई 102 :: जैनधर्म परिचय For Private And Personal Use Only
SR No.020865
Book TitleJain Dharm Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2012
Total Pages876
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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