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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बाहबलि, मूडबिद्री, हलेबिड, वेणूर, कार्कल, वादामी की गुफाएँ, सित्तनवासल की गुफाएँ, तिरुपत्तिकुंजरम, करन्दई, तिरुमलै आदि अनेक स्थानों की गणना कलाक्षेत्रों के रूप में की जा सकती है। इनमें भी गोम्मटेश्वर बाहुबलि, हलेबिड, वादामी की गुफाएँ, सित्तनवासल की गुफाओं के भित्तिचित्र, खजुराहो, ग्वालियर का क़िला आदि ऐसे कला-स्थान हैं, जिनकी जानकारी के बिना भारतीय कला-पुरातत्त्व का अध्ययन अधूरा ही कहा जाएगा। देशविदेश के पर्यटकों, कला-मर्मज्ञों, पुरातत्त्व-वेत्ताओं एवं इतिहासकारों के लिए ये महान आकर्षण के केन्द्र बने हुए हैं। इन्हें देखकर ऐसा लगता है, जैसे इनके निर्माण में कोई दैवीय प्रभाव भी साक्षात् या परोक्ष में रहा है। इन स्थानों में जैन तीर्थंकर मूर्तियाँ, भित्तिचित्र, मन्दिर, शासनदेवी-देवताओं की मूर्तियाँ, गुफा मन्दिर, जैन प्रतीक और शिलालेख तथा ताड़पत्रीय पांडुलिपियाँ विशेष दर्शनीय होने के साथ-साथ अध्ययन की महत्त्वपूर्ण सामग्री प्रस्तुत करती हैं। तीर्थ-यात्रा : कब और कैसे ___ यों तो कभी भी तीर्थ-यात्रा की जा सकती है, पुण्य का संचय तो होता ही है, फिर भी अनुकूल समय, अनुकूल वातावरण में तीर्थ यात्रा का आनन्द कुछ और ही है। तीर्थ पर जाकर भगवान से सांसारिकता को बढ़ाने वाली किसी भी वस्तु की कामना नहीं करना चाहिए। निष्काम भक्ति ही श्रेष्ठ भक्ति कहलाती है। 'विषापहार' में कितना अच्छा लिखा है, देखिए : इति स्तुतिं देव विधाय दैन्याद् वरं न याचे त्वमुपेक्षिकोऽसि। छायातलं संश्रयत: स्वतः स्यात् कश्छायया याचितयात्मलाभः। 38॥ अर्थात् : हे देव! स्तुति कर चुकने पर आपसे कोई वरदान नहीं माँगता। आखिर माँगूं भी तो क्या माँगूं! आप तो वीतराग हैं, फिर माँगें भी तो किसलिए? भला कोई छाया तले बैठने के लिए पेड़ से छाया माँगता है ? भगवान की शरण पाकर याचना करना ही व्यर्थ जैसा कि ऊपर कहा गया है, तीर्थ-यात्रा का मुख्य ध्येय आत्मशान्ति या आत्मशुद्धि है, अतः इसके लिए पहली शर्त है- यात्रा के समय जितना भी सम्भव हो सके, सांसारिकता से स्वयं को निर्वत्त रखे। ऐसा इसलिए कि घर-गृहस्थी में रहकर व्यक्ति को जीवन-यापन की अनेक चिन्ताएँ लगी रहती हैं, अनेक प्रकार की आकुलताएँ घेरे रहती हैं। आत्मशान्ति के लिए उसे अवकाश निकालना कठिन हो जाता है। ऐसे में वह किसी 96 :: जैनधर्म परिचय For Private And Personal Use Only
SR No.020865
Book TitleJain Dharm Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2012
Total Pages876
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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