________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir किं कुर्वन् समिधान: संदीपयन् / कथंभूतमग्निम् अमर्त्यम् अमरणधर्माणम् किमर्थपुरस्कृत्येतिचेत् / हव्याहवौंषिदेवेषु नः अस्मत्संवधीनि दधत् दधातु / सहास्याधिकारइति // 15 // सहव्यवाट् / यदोवाध्याहारः तच्छब्दश्रवणात् / य: हव्यवाट् हविषोवोढा अमर्त्यः अमरणधर्मा उशिक् मेधावी / दूतः देवानाम् / चनोहित: / चनइत्यन्ननाम / हविर्भूतस्यान्नस्यन // बोधयसमिधानोऽअमर्त्यम् / हुल्यादेवेधूनोदधत् // 15 // स / हव्यवाट॥सहव्यवाडमय॑शिग्दूतश्चनौहित // अग्निर्डिया समृण्वति // 16 // अग्निन्दुतम्पुरोधहव्यवाहुमुप॑ब्रुवे // देवा // ऽआसादयादिह // 17 // अजीजनोहिपवमानसूयबिधारेशमना भक्षणार्थं निहितः / स: अग्निः धियाप्रज्ञया समृण्वति संगच्छते देवैःसह हविष: तर्पणाय // 16 // अग्निन्दूतम् / यम्अग्निमदूत देवानांदूतम् अहंपुरोदधै अग्रत: स्थापयामि हव्य-शिवम् बाहम् हविषोवोढारम् तम् उपगम्यत्रुबेब्रवीमि / किंबवीमितदाह। देवानासादयादिह / 46 हेअग्नेदेवान् आसादत् आसादय दूह अस्मिन्यन्ने गृहयागाय // 17 // अजीजनीहि / For Private And Personal