________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir तस्यसुमतीबधः सम्बन्धिनीरातिंदानंच सवितुः ईमहेयाचेम। प्रदेवायमतीविदे देवस्यमतौविद. , इत्युभयो: पदयो: विभक्तिव्यत्ययः // 12 // रातिसत्पतिम् / रादाने / रातिनिमित्तत्वाद्रातिशब्देन सवितैवोक्तः / रातिदानरूपम यहाराति ददातीतिरातिम् / सत्पतिं सतांपालयितारम् महेपूजयामि / सवितारम् उपह्वये / आह्वयामि च / आसवम् / आभिमुख्येप्रसौति कर्माणीत्यासव: महे॥ प्रदवाय॑मतीविदे॥१२॥ गतिसत्प॑तिम् // गति सत्प॑तिम्म हेसवितारमुप॑ह्वये // आसवन्देववीतये // 13 // देवस्य सवितुर्मुति मासुर्वविश्वदेव्यम् // धियाभगम्मनामहे // 14 // अग्निस्तो तमासबंसवितारम् / किमर्थं पूजयाम्याह्वयामिच / देववीतये देवतर्पणाय // 13 // देवस्यसवितुः / मतिम् आसवम् प्रसवरूपाम् / विश्वदेव्यं सर्वेभोदेवेभोहितम् / धियास्वकीयया प्रज्ञया है भगंभजनीयं धनम् मनामहे याचामि / हिकर्माचार्यधातुः तेनमतिशब्द भगशब्देचद्वितीया // 14 // अग्निस्तोमेन। तिस्रआग्नेय्योगार त्वाः। हेअध्वर्या अग्निस्तोमेन स्तुतिभिः वीधय अवगतार्थङ्गुरु 126 For Private And Personal