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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्थ:-ते सिंदुक उशानमा ए प्रमाणे तो संशय दातां घोर परक्रमकाका श्रीकेशी साधुए मोटा यशवाळा श्रीगीतमने तो मस्तक बड़े प्रणाम उपराध्य 16करी आदि तीर्थकरना सुख आफ्नारा मार्ग विषे पांच महायतरुप धर्मनो श्रद्धाधी स्वीकार को. ॥ ८६ ८७ ॥ आबे गाथाओ मळी युग्म बने है. 5भाषांतर बाळास व्या--केशीकुमारश्रमणो भावतः अद्धातः 'पुरिमस्स' इति प्रथमतीर्थकृतो मार्गे, पश्चिमे पश्चिमतीर्थकरस्य अन्य०॥ १३५२॥ मार्गे, अर्थादादीश्वरमहावीरयोः सुखावहे मार्गे, तत्र सिंदुकोद्याने पंचमहाव्रतरूपं धर्म प्रतिपद्यतेंगीकरोति. किं IR॥१३५२४ कृत्वा! गौतम शिरसा मस्तकेनाभिवंद्य नमस्कृत्य, क सति ! एवममुना प्रकारेण गौतमेन मंशये छिन्ने सति. कीदृशं गौतम ? महायशसं. कीदृशः केशीमुनिः १ घोरपराक्रमो रौद्रपुरुषाकारयुक्तः. पूर्व केशीकुमारश्रमणेन चस्वारि प्रतानि गृहीतान्यामन् , तदा गौतमवाक्यात्पंचमहाव्रतान्यंगीकृतानीति भावः ।। ८७ ।। अर्थ:-श्रीकेशीकुमार साधुए भावता-श्रद्धाथी 'पुरिमस्स' इति-प्रथम तीर्थकरना मार्गमां, पश्चिमे-छल्ला तीर्थकरना मार्गमां, ल अर्थात् श्रीआदिनाथ तथा श्री महावीर स्वामीना मुख आफ्नारा मार्गमां, तत्र-ते तिंदुक नामना उद्यानमां पंचमहाव्रतरुप धर्मनो | प्रतिपद्यते-स्वीकार को. शुं करी स्वीकार कर्यों ? श्रीगौतमने मस्तकवडे अभिवंद्य-प्रणाम करी, शुं थतां प्रणाम करी? एवम् आ प्रकारे श्रीगौतमे संशय छेदी नाखता. केवा श्रीगौतमने? महायशवाळा गौतमने. श्रीकेशीमाधु केवा हता! घोरपराक्रमःप्रशंसनीय पराक्रमवाळा हता. पहेलां श्रीकेशीकुमार साधुए चारव्रतो लीयां हतां अने श्रीगौतमनो समागम थयो त्यारे तेना वच नथी पांच महाव्रतोनो स्वीकार को ए आशय छे. ।। ८६८७॥ BI मू-केसीगोयमओ निचं । तम्मि आसि समागमो॥ सुयसीलसमुकरिसो । महत्थविणिच्छओ ॥ ८८ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020858
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 05
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorLakshmivallabh Gani
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1938
Total Pages254
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size7 MB
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