SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 149
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उत्तराध्यक्न पत्रम् | भाषांतर अभ्य०२१ १२५१३ ॥१२५१ कनक तमारा एकमांज जेनुं चित्त छे एवी राजीमती कम रही शकशे ? माटे अमारी खातर तेनुं पाणिग्रहण करो अने पछीथी प्रव्रज्या गृहण करजो. आ सांभळी भगवान् नेमि बोल्या के-हे माता! तमे मनमा संताप मा करो. सर्व पदार्थोनी अनित्यता समजो विषयो बधा परिणामे अति दारुण के अने सर्वथा तृप्तिजनक थताज नथी. यौवन धन आदिक सर्व चंचळ छे, आ बधा विलास संध्या समयनां वादळां जेवां क्षणिक छे; मृत्यु अकस्मात् प्रहार करनारो छ, अने आ संसार तो जन्म जरा मरण रोग आदि उपद्रवमयज समजो. माटे हे माता! आवळता भवमाथी नीकळी जवाने मने अनुज्ञा (रजा) आपो. ॥ अत्रांतरे दशारचक्रेण नेमिणतः, कुमार ! संप्रति त्वया परित्यक्तस्य यादवलोकस्य न कश्चित् त्राणमिति ततः कंचित्काल प्रतीक्षस्व ? सदुपरोधशीलया वाण्या भगवता संवत्मरमेकं यावत् स्थितिरंगीकृता, दत्तं च तस्मिन्नेव सांवत्सरिक दानं. प्रतिपूर्णे च संवत्सरे मातृपित्रादीनापुच्छय श्रावणशुद्धषष्ठयां स देवमनुष्यपर्षदा परिवृतो नगर्या निर्गत्य गतः सहस्राम्रबनोद्याने, त्रीणि वर्षशतानि गृहस्थावासे स्थिन्या षष्ठभक्तेन पुरुषसहस्रेण समं तत्र निष्क्रांतस्तपासंयमरतो विहरति.।। अर्थः-आ अवसरे दशारचके नेमिन कधु के-'हे कुमार ! आ टाणे तमे आ यादव लोकोने त्यजतां एओने कोई आश्वासन नथी तो आप केटलोक काळ खोभरो तो सारूं' आवा आग्रहथी तेओना मनःसमाधानार्थ भगवान नेमिनाथे एक संवत्सर सूधी त्यां स्थिति करी. अने त्यांज सांवत्सरिक दान दीधुं. ज्यारे एक संवत्सर पूर्ण थयो त्यारे मातापिता वगेरेनी रजा लइ श्रावण शुक्लषष्ठीदिने देवमनुष्य मंडळथी परिवृत्त नेमिनाथ नगरीमाथी नीकळी सहस्राम्रश्न नामना उद्यानमां गया. त्रणसे वर्ष गृहस्थावासमां %82%A4% *% For Private and Personal Use Only
SR No.020858
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 05
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorLakshmivallabh Gani
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1938
Total Pages254
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy