SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 33
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra उत्तराध्य यन सूत्रम् ॥८९०॥ www.kobatirth.org अने छडी दशामां अनादि आहार न रुचे गमे, सातमो भात्र कंपनी उत्पत्ति=शरीर धुजवा मांडे, आठमी दशा उन्माद = बेलछा जेवुं जाय. २ नवम दशामां प्राण संदेह जणाय अने दशम दशामां जीवित त्याग थाय, कामिजनोने मनमां कामजन्य उगने लइ आ दशे अवस्थाओं थाय छे, ३ आवी रीते स्त्रीदर्शनथी दश भावो उत्पन्न थाय छे. ते पछी केवळ प्रज्ञप्त = केवलिए प्रणीत श्रुतचारित्ररूप धर्मथी भ्रष्ट थाय; माटे आ वधां दुषणोनो प्रादुर्भाव थाय तेथी ते निर्ग्रथ न रहे. आ प्रथम ब्रह्मचर्य समाधिस्थान छे; आ ब्रह्मचर्यरूपी वृक्षनी प्रथम वाडी कही. नोनिग्थे इत्थी कहे कहेत्ता हवइ से निग्गंथे तं कहमिति चेत् आयरिग आह, निग्गंधस खलु इत्थीणं कहं कहेमाणस्स बंभयारस्स बंभचेरे संका वा कंखा वा वितिगिच्छा वा समुप्पजिजा, भेयं वा लभेज्जा, उम्मायं वा पाउणिज्जा, दीहकालियं वा रोगार्थकं हविज्जा, केवलिपन्नत्ताओ धम्माओ भंसेज्जा, तुम्हा खलु निग्गंथे नो इत्थीणं कहं कहेज्जा. निर्ग्रथ साधुये स्त्रीआनी कथाना कहेनार न थबुं, तो तेज निर्बंथ 'ते केम थवाय ? एम शिष्य कदाच शंका करे. एम मानीने आचार्य पोतेज कहे के जो निर्बंथ-साधु स्त्रीयोनी कथा कहेवा मांडे तो निश्चये ते ब्रह्मचारी होय तो पण ब्रह्मचर्यमा शंकर थाय अथवा कांक्षा किंवा विचिकित्सा संशय उपजे अथवा भेदने पामे वा उन्मादने प्राप्त थाय अथवा दीर्घकाळ रोग वा आतंकवाळो थाय अने तेथी केवळीये प्ररूपण करेला धर्मधी भ्रष्ट थाय ते कारणथी निर्मथ साधुये स्त्रीसंबंधी अथवा स्त्रीओनी साथे कथा कनारा थषु नहिं. २ व्या० - स निग्रो भवति, स इति कः ? यः स्त्रीणामर्थादेकाकिनीनां स्त्रीणामेव कथां वाक्यप्रबंधरूपां वार्ता, अथवा For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भाषांतर अध्य०१६ ॥८९० ॥
SR No.020857
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 04
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorLakshmivallabh Gani
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1937
Total Pages246
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy