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भाषांतर अध्य०१६ ॥८८४॥
कहेलां छे | कडं? आ केइ मारीज बुद्धि नथी किंतु मारी अपेक्षाये घणाज वृद्ध एवा तीर्थकरोये तथा गौतमादि गणधरोए आम उत्तराध्य- कहेलुं छे अने हुं पण तेज प्रमाणे तमने कहुं छु; जे ब्रह्मचर्य समाधिस्थानोने भिक्षु, सांभळीने-शब्दरुपे श्रवणेद्रियमां धारण करीयन सूत्रम् तेमज अर्थबोधपूर्वक मनमां समजीने संयम बहुल जेनो संयम बहुल-अर्थात् प्रधान प्रधानतर इत्यादि स्थान प्राप्तिथी उत्तमताने पाम्यो ||८८४॥
होय तेवो एटले वधतुं जतुं छे परिणम जेनु एवा चरित्रवाळो बनी सर्वत्र विहरे; वळी जे ब्रह्मचर्य समाधिस्थान सांभळीने संवर बहुल-संवर एटले आश्रवनो निरोध, ते जेने बहुल-वृद्धिगत थयो होय ते संबर बहुल अर्थात्-प्राधानाश्रव द्वारनिरोध युक्त थयेलो तथा समाधि बहुल-बहुल समाधि, अर्थात्-प्राधान्ये करी चित्तनी स्वस्थतायुक्त बनेलो थइने विहरे. वळी जे ब्रह्मचर्य समाधि स्थानोने सांभळी भिक्षु गुप्त मन वाणी तथा कायानी त्रिविध गुप्तिथी युक्त थाय तथा सर्व इन्द्रियोनी गुप्तिमा समर्थ थाय अने एवी रीते नवगुप्तिना सेवनथी जेनुं ब्रह्मचर्य सेववानुं शीळ सुरक्षित थयुं छे एवो, अर्थात् स्थिर ब्रह्मचर्यनो धारक बनी सदा सर्वदा अप्रमतजराय प्रमाद न करतां विहार करे. कारण के-पूर्वे जे साधु ब्रह्मचर्य समाधिस्थानो सांभळे तेज साधु ब्रह्मचर्य पालनमां स्थिर थाय,
काछ के-'सांभळीने कल्याण जाणे तेम पापकने पण सांभळीने जाणे; उभयने पण श्रवण करीने जाणे छे पछी जे श्रेयः सारु JE होय तेनुं आचरण करे.'१ए प्रमाणे सांभळीने जंबू पूछे छे--
कयरे खलु थेरेहिं भगवंतेहिं दस बंभचेरसमाहिठाणा पन्नत्ता? जे भिक्खू सुच्चा निसम्म
संयमबहुले संवरबहुले समाहिबहुले गुत्ते गुत्तिदिए गुत्तबंभयारी सया अप्पमत्ते विहरेजा. ॥२॥ र भगवान् स्थविरोये दश ब्रह्मचर्य समाधि-स्थान प्रज्ञापित करेला छे ते क्या? के जे मिक्ष सांभळी समजी संयमबहुल, संवर.
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