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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भरनक्षेत्रं माधितवान, उत्तराध्य-BE JE भाषांतर यन सूत्रम् आजे वळी कुमार एम बोल्या के-'ज्यां आपणे यक्षने जीत्यो त्यां जवान छे' हमणा अत्रे आवेला कुमारनी आगळ अमे एमनी सघळी पत्नीओ मळी प्रेक्षण (नावप्रयोग) करता हता त्या तमारुदर्शन थयु. एटलामा रतिगृह शय्याथी उठीने कुमार महेन्द्रसिंहनी JE अध्य०१८ ||९९९।। साथे विद्याधर परिचारित थइ वैताढ्य पर्वत उपर गया. त्यां अबसर मेळवी महेंद्रसिंहे कुमारने विज्ञप्ति करीके-'हे कुमार ! तमारां ॥९९९॥ माता पिता तमारा वियोगथी पीडित बनी दुःखथी काळ गाळे छे, माटे तेओना दर्शन लेवा मरजी करो. आबु महेंद्रसिंहर्नु वचन सांभळतां वेतन आकाशमा रहेला अनेक विमान हाथी घोडा आदिक वाहन उपर चढेला महोटा विद्याधर समुदायने साथे लइ हस्तिनागपुरमा कुमार आव्या अने मातापिताना तथा नगरजनोने आनंदित कर्या. तदनन्तर महोटी समृद्धिसहित राजा अश्वसेने सनत्कुमारने पोताना राज्यपद उपर अभिषिक्त कर्या. अने महेंद्रसिंहने सेनाधिपति कर्या. कुमारना माता तथा पिताए स्थवीरोनी समीपे जइ प्रवज्या-दीक्षा-गृहण करी पोतानुं परम कर्तव्यानुष्ठान कयु. सनत्कुमार पण दिनप्रतिदिन खजानो तथा सैन्यनी वृद्धि करतो राज्यनुं पालन करवा लाग्यो. चतुर्दश रत्न तथा नवनिधि उत्पन्न थया तेनी पूजा करी ते पछी चक्ररत्ने दर्शावेला मागें मगध, वरदाम, प्रभास, सिंधुखंड तथा प्रपात आदि क्रमे करी भरतक्षेत्रने साध्यु. एवं सनत्कुमारो हस्तिनागपुरे चक्रवर्तिपदवों पालयन् यथेष्टं सुखानि भुक्ते. शके गावधिज्ञानप्रयोगात्तं पूर्वभवे स्वपदाधिरूढं ज्ञात्वा महता हर्षेण वैश्रमणोऽनुज्ञातः, सनत्कुमारस्थ राज्याभिषेकं कुरु ? इमं च हारं, वनमालां, छत्रं, | मुकुट, चामरयुगलं, कुंडलयुगं, दृष्ययुगं, सिंहासनं, पादपीठं च प्राभृतं कुरु ? शक्रेण तव वृत्तांतऽ पृष्टोऽस्तीति For Private and Personal Use Only
SR No.020857
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 04
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorLakshmivallabh Gani
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1937
Total Pages246
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size13 MB
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