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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उत्तराध्ययन सूत्रम् ॥९७६॥ भाषांतर अध्य०१८ ॥९७६॥ لقد قمنا بنقالي فالفات الا انها لا ننللننللثالثة तिना श्रीअजितनाथसमीपे दीक्षा गृहीता, क्रमेण च कर्मक्षयं कृत्वा सगरः सिद्धः. ___आ अरसामाज अष्टापद समीपे रहेनारा जनोए आवी चक्राने प्रणाम करो का के-'देव! आपना पुत्रोए अष्टापदनी रक्षा करवा माटे गंगाचो जे प्रवाह आण्यो छे ते नजदीकना गाम नगर विगेरेमां उपद्रव करे छे, ते आप निवारो. ए निवारवामां बीजा कोइनी शक्ति नथी. आ बखते चक्रीए पोताना पौत्र भगीरथने का के-'वत्स नागराजनी अनुज्ञा लइ दंडरत्नवडे गंगाना प्रवाहने समुद्रमा लइ जाओ. ते पछी ए भगीरथ अष्टापद समीपे गया. अभक्त (बत)बडे नागराज आराध्या. त्यारे नागराज प्रत्यक्ष आवीने बोल्या के-'कहो | तमारे माटे करवानछे ? त्यारे प्रणाम करी भगीरथे कह्यु के-तमारा प्रसादथी हुँ आ गंगापवाहने समुद्रे लइ जाउं. अष्टापद पासेनां लोकोने महान उपद्रव थाय छे. नागराजे कयु-निर्भय थइने तमे जे धार्यु होय ते सुखेथी करो. भरतनिवासी नागोने हुँ निवारीश,' आटलं बोलीने नागराज स्वस्थाने गया. राजा भगीरथे पण नागोने बलिपुष्पादिकवडे पूजी प्रसन्न कर्या, त्यारथी लोको नाग बलि वगेरे करे छे. भगीरथ पण दंडवडे गंगाप्रवाहने आकर्षी बचे आवता घणा स्थल शैलपवाहोने भांगतो पूर्वसमुद्रने पहोंच्यो. त्यां गंगाने उतार्या अने त्यां पण नागोनी बलिपूजा करी. जे ठेकाणे गंगा सागरमा प्रवाहित थया ते गंगासागरतीर्थ कहेवाणु. गंगाने जन्हु लाव्यो तेथी जान्हवी कहेवाणा अने भगीरये समुद्रमा मेळव्यां तेथी भागीरथि कहेवाणा. भगीरथि पण त्यां मळेला नागोए पूजित थइ पोते अयोध्या गया. चक्रीए प्रसन्न थइ सन्मानीने भगीरथीने पोताना राज्य उपर स्थापित कर्या अने सगरचक्रवर्तीए पोते अजीतनाथनी समीपे जइ दीक्षा गृहण करी, क्रमे क्रमे कर्म क्षय करी सगर सिद्ध थया. अन्यदा भगीरथिना राज्ञा कश्चिदतिशयज्ञानी पृष्टः, भगवन् ! किं कारणं ? यजन्हुप्रमुखाः षष्टिसहस्रा भ्रातरः For Private and Personal Use Only
SR No.020857
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 04
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorLakshmivallabh Gani
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1937
Total Pages246
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size13 MB
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