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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassaqarsuri Gyanmandir उत्तराध्य-16 मेरुपर्वत केवो? नाना=विविधप्रकारनी ओपधियोवडे, अर्थात् शल्य विशल्या, संजीविनी, संरोहिणी, चित्रावल्ली, सुधावल्ली, विषाप TO भाषांतर यनसूत्रम् हारिणी, शस्त्रनिवारिणी, भूत दमनी, नागदमनी; इत्यादिक अनेक जडी मूळीथी प्रज्वलित रहे छे तेवीरीते बहुश्रुत पण सर्व साधु IAS अध्य०११ ओमां प्रवर श्रेष्ठ तथा गुणोबडे उच्चतर तथा विविध अने परवादीरुपी वायुथी अडग प्रकारनी लब्धिना अतिशयवाळी सिद्धिरुप ॥६५॥ ओषधिओ बडे मिय्यात्वरूपी अंधकारमा पण वनस्वामी, मानतुंग, कुमुद चंद्रादिनी पेठे जैनशासनप्रभावनारूप प्रकाशकारक होय छे. GE ॥६५॥ जहा से सयंभुरमणे । उदही अवओदए । नाणारयणपडिपुण्णे । एवं हवइ यहुम्सुए ॥ ३० ॥ (जहा) जेम (से) से (संयभुरमणे) स्वयंभूरमण नामनो (उदही) समुद्र [अक्खोदए अखूटजळयाळो तथा (नाणारयणपडिपुन्ने) रत्नथी भरपूर [ए] एज प्रमाणे [बहुस्सुपभवाइ] ३० व्या०-यथा स इति प्रसिद्धः स्वयंभूरमणनामा चरमोदधिविराजते, तथा बहुश्रुतोऽपि विराजते. कथंभूतः स्वool यंभूरमणोदधिः? अक्षयं शाश्वतमविनाशि उदकं जलं यस्य सोऽक्षयोदकः. पुनः कथंभूतः स्वयंभूरमणसमुद्रः? नाना रत्नप्रतिपूर्णः, बहुप्रकारैरसख्यैर्माणिक्यैर्भूतः. तथा बहुश्रुतोऽपि स्वयंभूरमण इव. कथंभूतो बहुश्रुतः? अक्षयज्ञानोदकोऽक्षयज्ञानजलः. पुनर्बहुश्रुतः स्वयंभूरमणसमुद्रवन्नानाप्रकारातिशयरूपरत्नैः संपूर्णः ॥ ३० ॥ जेम ते स्वयंभूरमण नामनो छेल्लो उदधि-समुद्र शोभे छे तेम बहुत पण विराजे छे. स्वयंभूरमणोदधि केवो छे? नानारत्नJE प्रतिपूर्ण घणा प्रकारनां माणिक्यादि असंख्य रत्नोथी भरेलो तथा अक्षयोदक एटले कोइ काळे खूटे नहिं तेवा शाश्वत जलथी| | भरेलो छे तेम बहुश्रुत पण अखूट ज्ञानरूपी जळयी भरेलो तथा स्वयंभूरमण समुद्रनी पेठे विविध अतिशयरूप रत्नोवडे संपूर्ण होय छे. For Private and Personal Use Only
SR No.020856
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 03
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorLakshmivallabh Gani
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1936
Total Pages291
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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