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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra उस राध्यपनसूत्रम् ॥७६२ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सोवाच, येनाहं हस्तिसंभ्रमाद्रक्षिता, तेन समं यदि मम पाणिग्रहणं न स्यात्तदा मेऽवश्यं मरणं, एवमुक्त्वा तया तव समीपे प्रेषिता, अंगीकुरु तां बालिकां ? कुमारेण तद्वचोंगीकृतं प्रशस्तदिवसे तस्याः पाणिग्रहणं कुमारेण कृतं. वरधनुना तु सुबुद्धिनामामात्यपुत्र्या नंदननाम्न्याः पाणिग्रहणं कृतं. एवं च द्वयोरपि विषयसुखमनुभवतोस्तयोर्गताः कियंतो वासराः, तयोः सर्वत्र प्रसिद्धिर्जाता. राजा पण तेनी असाधारणता अवलोकी परम विस्मय पाम्यो, अने पोताना मंत्रीने पूछयुं के 'आ कोण छे?' मंत्री कुमारना स्वरूपनी जाणकार हतो तेणे कछु के- 'आ ब्राह्मराजाना ब्रह्मदत्त कुमार छे' आ वचन सांभळी तुष्ट थयेला राजाए कुमारने पोताने भवने लड़ जड़ स्नानमज्जन भोजन वगेरेथी सारो सत्कार कर्यो अने पोतानी आठ पुत्रीओ कुपरने आपी महोटा उत्सव पूर्वक कुमार साथे तेओना विवाह कर्या, त्यां केटलाक दिवस वरधनु तथा कुमार मुखथी रह्या. एक समये कोइ स्त्री कुमार पांसे आवीने बोली के - 'हे कुमार ! मारे आपने कंद कहेवानुं छे.' कुमारे क - 'जे कहेवानुं होय ते कहो' त्यारे ते स्त्री बोली के- 'आज नगरीमां वैश्रमण नामनो एक सार्थवाह रहे छे, तेनी पुत्री श्रीमती नामे छे तेने में बाळपणाथीज पाळी महोटी करी छे जेने तमे ते दाणे झपाटामाथी बचावी. ज्यारथी तमे तेणीनो हाथीना संभ्रममांथी उद्धार कर्यो. त्यारथी जीवितदान आपनार तमने मानी तमने Feet नीळती तमारामां एकाग्रचित्तवाळी ए कन्या तमारा रूप, लावण्य, तथा कला कौशलथी मोह पामीने तमारुज ध्यान करती परिजने घरे पहोंचाडी त्यां पण ते नहावुं भोजन करवुं, इत्यादि शरीर स्थिति पण करती नथी. में तेणीने कधुं के आम एकदम तुं आवी केम थइ गइ जे मने पण जवाब नथी देती.' त्यारे हसीने ते बोली- 'हे मा! तमने न कहेवानुं भुं होय ? पण लाजने लीवे For Private and Personal Use Only भाषांतर अध्य०१३ 1198211
SR No.020856
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 03
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorLakshmivallabh Gani
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1936
Total Pages291
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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