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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भाषांतर अध्य०१२ ||६७८॥ क्रियाकर्म विशेषथी चातुर्वर्ण्य व्यवस्थित छे, ब्राह्मणत्व जातिमान् ब्राह्मण, ब्राह्मण ब्राह्मणी युग्मथी उत्पन्न थवाथीज मात्र ब्राह्मण उत्सराध्य-06 न कहेवाय किंतु ब्राह्मणत्वब्रह्म क्रियानिष्ठत्व वडे करीने-ब्रह्ममां स्थित पामेलो जातिधर्मे करी विशिष्ट होवाथी ब्राह्मण कहेवाय; पनमूत्रम् माटे तमारामां ब्रह्मक्रियानिष्ठत्व न होय तो जाति न मनाय, ब्राह्मणो तो ब्रह्मचर्यचडे लक्षित कहेवाय छे. तमे विद्यायुक्त नथी जणाताता ॥६७८॥ विद्यानुं फळ विरति नर्थी देखाती. विद्यावान् जो विरतिवाळो थइ यावत्पर्यंत आश्रवोनो संवर द्वारा निरोध न करे त्यां सूची विद्वान् न कहेवाय. परमार्थतः विद्या एज कहेवाय के जेमां पंचआश्रवोनो परिहार कहेल छे; ते कारणथी तमे विद्यावान जणाता | नथो. तमारामां तमे कहेलं जातिविद्योपपेतत्व ब्राह्मणलक्षण सर्वथा नथी तेथी तमे पापक क्षेत्र छो पुण्यक्षेत्र नथी. १४ 'अमे वेदवित् छइए' एम कदाच तेओ कहे तो ते संबंधे कहे - तुप्भस्थ भो भारहरा गिराणं । अट न जाणाह अहिज वेऐ ।। उच्चावयाई मुंणिणो चरंति। ताई तु खिताई सुपेसलाइं॥१५॥ (भो) हे ब्राह्मणो! [इत्थ] आ जगतमा तुम्भ) तमो मात्र (गिराणं) बाणीना (भारधरा) भारने धारण करनारा छो कारण के [ए] वेदविद्याने [अहिज] भणीने पण (अट्ठ) तेनो अर्थ [न याणाह तमो जाणता नथी हवे उत्तम क्षेत्र क्यु? (मुणिणो) ने मुनिओ (उच्चावयाई) भेदभाव विना भिक्षा माटे (चरति) अटन करे छे तेथी [ताई'तु] तेओज (सुपेसलाई) उत्तम (खित्ताइ) क्षेत्रो छे. १५ व्या०-भो इत्यामंत्रणे, भो ब्राह्मणाः ! ययं गिरां वेदवाणीनां भारहरा भारोदाहकाः, यतो यूयं वेदानधील वेदानामर्थ न जानीथ. तथाहि-आत्मा रे ज्ञातव्यो मंतव्यो निदध्यासितव्यः, पुनरयं समो मशके नागे च, न हिंस्यात् सर्वभूतानीत्यादिवेदवाक्यान्यधीतानि. अथ पुनर्भवद्भिर्जीवहिंसास्वेव अवार्यते, तस्मादत्र यागः पृथक् एव उच्यते, مناناناناناتلاف انشالا لاند For Private and Personal Use Only
SR No.020856
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 03
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorLakshmivallabh Gani
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1936
Total Pages291
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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