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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www kobaith.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyarmandie भाषांतर अध्ययन५ ॥३८॥ बन्ने शरीरनो विनाश करीने त्रणपकारनां सकाममरणोमांना अन्यत्तम-एक सकाममरण प्रकारवडे करी मृत थाय छे. ते सकामउत्तराध्य- | मरणना प्रणप्रकार-भक्तपरिज्ञा, इंगिनी अने पादपोपगमन, आम वर्णव्या छे तेमाना प्रथम भक्तपरिज्ञा-एटले त्रिविध अथवा पन सूत्रम् चतुर्विध आहारनुं प्रत्याख्यान १ जेमां मंडल करी ते मध्ये प्रवेश करी तदनंतर मंडळनी बहार नन नीसरवु, ते इंगिनी २ अने ॥३८३॥ जेमां एक छेदेली वृक्षनी डाळनीपेठे जे पडखे पड्या ते पड्या, पडीथी पडखुपण बदलावq नहि, ते पादपोपगमन ३ ए त्रण सकाममरणना प्रकार छे नेमांनो एक प्रकार स्वीकारीने मरवु ते सकाममरण अथवा पंडितमरण कहेवाय. इति सुधर्मस्थामी जंबम्बामिनं प्रति कथयति हे जंबू ! अहं भगवचसा त्वां ब्रवीमि ॥ ३२ ॥ ____ ॥ इत्यकामसकाममरणीयमध्ययनं पश्चमम् ॥ आवीरीते सुधर्मास्वामी जम्बूस्वामी प्रति 'हु आ सघर्छ भगवान्ना वचनथी बोल्यो छ' एम कहे . ३२ इति श्रीमदुत्तराध्ययनसूत्रार्थदीपिकायामुपाध्याय श्रीलक्ष्मीकीर्तिगणिशिज्यलक्ष्मीवल्लभगणिविरचिताया मकानसकाममग्णीयाख्यस्य पंचमाध्ययनस्यार्थः संपूर्णः ॥ श्रीरस्तु ॥ आ अकामसकाममरणीय नामर्नु पांचम अध्ययन कयु. ए प्रमाणे उत्तराध्ययनमूत्रार्थदीपिका के जे उपाध्याय श्रीलक्ष्मीकीति२८ गणिना शिष्य लक्ष्मीवल्लभगणिए रचेली छे तेमां अकामसकाममरणीय आख्यावाळा पांचमा अध्ययननो अर्थ संपूर्ण थयो. For Private and Personal Use Only
SR No.020855
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorLakshmivallabh Gani
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1935
Total Pages290
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size15 MB
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