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________________ Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org अर्थः-सुधर्माखामी जम्बू स्वामीने कहे छे के-एके-केटलाक महापुरुषो घातिकर्मरहित गौतमादीक आ महोघ=3E उत्तराध्य-JE महोटा ओघवाळा दुरुत्तर=भतिदुस्तर आ अर्णव-संसार समुद्रथी तीर्ण-तरी परपारने पाम्या. (अहीं प्राकृत होवाथी विभक्ति- भाषांतर यन सूत्रम् व्यत्यय छे) तत्र देवमनुष्य सभामां ते काळे आ भरतक्षेत्रमा एक तीर्थकर महामज्ञ महोटी केवला प्रज्ञा जेने उत्पन्न अध्ययन थयेली रवा महावीर हता तेणे पृष्टव्यार्थरूप आ प्रश्न उदाहृत कर्यो. ॥ १ ॥ ॥३५६|| ॥३५६॥ संतिमे अदुवे ठाणी । अक्खाया मारणंतिया ॥ अकाममरणं चे सकाममरणं तहा ॥२॥ मूलार्थः-(मारणतिभा)-मरण अवस्थामा थनारा (इमे अ =आ कहेवाशे एवा (दुवे)चे (ठाणा)-स्थानो (अक्खाया)-तीर्थकरोए क३८ हेला (संति)-छे ते आ प्रमाणे-[अकाममरण] बाळमरण (चेव )-निश्चयथी [तहा] तेथी [सकाममरण]-पडित मरण ॥२॥ व्याख्या-इमे प्रत्यक्ष द्वे स्थाने आख्याते, जीवनिवासाश्रयावाख्यातो. पुर्व तीर्थकरैः कथितो, कीडशे JE द्वे स्थाने के? मारणांतिके मरणमेवांतो मरणांतस्तत्र भवं मारगांतिकं, तस्मिन् मरणावस्थायां जाते इत्यर्थः. |ते हे स्थान के ? एकमकाममरणं च पुनरन्यथा सकाममरणं, अकाममरणं बालमरगं, सकाममरगं पंडित मरणं, चैवशब्दो पदपुरणार्थी. मरणं, ससदशधा-आवीचीमरणं १ अवधिमरणं २ अंतिम ३ वलय ४ वशात ५ अंतःशल्य ६ तद्भव ७ पंडित ८ बाल . मिश्र १० छद्मस्थ ११ केवली १२ विहायस १३ | गृद्धपृष्ट १४ मतपरिज्ञा १५ इंगिनी १६ पादपोपगमन १७ चेसि. الظالماقتا قالها الفالله لا اله الا الله For Private and Personal Use Only
SR No.020855
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorLakshmivallabh Gani
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1935
Total Pages290
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size15 MB
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