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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir الن عملائنا الطاث فانها भाषांतर अध्ययन४ ..36 | ॥३५॥ देवदत्तांयां प्राह पश्य मूलदेवस्य विवेकितां? तदैवाचलेनेक्षुयष्टिभृतं शकटं प्रेषितं, अक्का देवदत्तांप्रत्याह उत्सराध्य- पुत्रि पश्याचलस्यौदार्य ? सा प्राहाहं किं करिष्यनेन ज्ञाता यस्याः कृते तेनासंस्कृतेक्षुयष्ठिभृतं शकटं प्रेषितं ? यन सूत्रम् अथाका मृलदेवस्य देषिण्यचलपार्श्व गत्वा देवदत्ताया मूलदेवासक्तस्वरूपमूचे, अचलेनोक्तं तथा कुरु यथाहं ॥३२॥ मूलदेवं गृहामि, तयोक्तमवश्यं मया तगोगावसगे ज्ञाप्यः, अचलेन तस्या दीनाराष्टशतं दत्तं, सा गृहे गत्वा देवदत्ताया इदमकथयदचलोऽद्य. त्वरितकार्ये समुत्पन्ने कचिद ग्रामे चलितोऽस्ति, सोऽद्य नायास्यति, तथाप्यद्यदिनसत्कं भाटकं प्रेषितमस्ति, एवमुक्त्वा दीनाराष्टशतं तया देवदत्तायादत्तं. ते जोइ देवदत्ताए नी माने का के-'मूलदेवर्नु सुघडपणुं तथा विवेकीपणु जो.' तेटली वारमा शेरडीन भरेलु Neगाई अचले मोकलेलं आव्यु ते जोइ, तेनी मा बोली के-जो अचलनी उदारता केवी छे ? शेरडीन गाई भरीने मोकल्यु? | देवदत्ता बोली के- अचले शुं मने हाथणी समजी? जेने माटे भोथांसोती शेरडीनुं गाडं भरीने मोकल्यु? देवदत्तानी माना मनमा मूलदेव उपर द्वेष वध्यो. ते अवलपांसे जइने देवदत्तानी मूलदेवमां आसक्तिनु स्वरूप का त्यारे अचल बोल्यो के-'तुं एवो लाग गोठव के हुँ मूलदेवने पकडी शकुं' डोशी बोली के-'ठीक, अवश्य हुँते मूलदेबना भोगनो अवसर तमने जणावीश.' अचले आ डोशीने आठसो दीनार दीधा ते लइ डोशी घरे गइ. देवदत्ताने का के-आज अचल कई उतावळु काम आवी पडयु तेथी गाम चाल्या गया. एटले आजे नहिं आवे: तो पण | | आजनादीनु भाई मोकल्यु छे' आम कहीने आठसो दीनार देवदत्ताना हाधमां आप्या. الدلالالالالالالالالالافتاماقلاالاالطالوت پامالنا ماقلنالك النهج السلفية النظ For Private and Personal Use Only
SR No.020855
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorLakshmivallabh Gani
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1935
Total Pages290
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size15 MB
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