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भाषांतर अध्ययन
॥३२॥
* आवी चड्या. त्यां देवोने वंदन करी बेठेला साधुअने पण वंदन कयु. गुरुए देशना उपदेश देवा मांडतां वचमा कुमारे उत्तराध्य
पूछ्यु के-आ पांचे भाइओ जेबा लागता पांच साधुओ कोण छे ? एओने वैराग्य केम उत्पन्न थयु? अने एओए| पन सत्रम् १५ आ भरजुवानीमां आव॒ व्रत ग्रहण केम कयु ? आम कुमारे पूछतां गुरुए पांचेनो तमाम वृत्तांत कही देखाड्यो कुमार |
JET तो ते चरित्र सांभळीने खीस्वरूप संबंधी आ प्रमाणे विचार करवा लाग्यो-एक क्षणमां स्त्रीओ अनुरक्त थाय छे अने ॥३३०॥
DEI क्षणमा पाछी युवतिभो विरक्त थाय छे जे स्त्री अनन्य रागीणी जणाती होय, तो पण हळदरना रंगजेबी क्षणे क्षणे, चळ छे | मेम जेनो एवीसमजबी. आम विचारी कुमार पण वैराग्यथी प्रबजित दीक्षित थयो. जेम आ अगडदत्त प्रतिबुद्धजीवी, पूर्व द्रव्यामुप्त हतो ते पश्चात् भावासुप्त थइ आ लोकमां तथा परलोकमां सुखी थयो ॥ ५॥
चरे पयोइं परिसंकमाणो । जैकिंचि' पास इह मन्नमाणो॥
लाभतरे जीवियवहईत्ता । पच्छी परिन्नाय मलावधंसी ॥७॥ मूलार्थः-[पयाई]-पद-धर्मस्थानोनेविषे (पदिसंकमाणो -शंका करतो (जकिंचि)-जे काइ (पास)-पासलाजेवां (इह)=आ चारित्रने विषे [मन्नमाणो) मानतो एवो साधु (चरे) विचरे (लाभांतरे)-एक बीजाने लाभसते (जीविअ]-जीवीतने (बूहहत्ता वृद्धि पमाडीने पिच्छा)-पछी (परिझाय) सपरिवाए जाणीने [मलावध'सी)-कर्मरुप मळनो नाश करनार थाय.
व्याख्या-साधुः संयममार्गे पदानि धर्मस्थानानि परिशंकमानश्चारित्रदुषणानि विचारयंश्चरेत् , संयममार्गे
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