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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra उत्तराध्ययन सूत्रम ॥५५७।। 兆毛毛毛兆兆我, - Within Rider Rauchen R www.kobatirth.org पडी के हार गयो छे. बीजे दिवसे राणीये खुळासो कर्यो के ए पेटी स्वच्छ स्फटिक मणिनी होवाथी जाणी गड़. आ प्रमाणे सातमी कथा पूर्ण था. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पुनरपि दासीष्टाया तयोक्तं — कस्यचिद्राज्ञः कन्या केनापि खेटेनापहता, तस्य राज्ञश्वत्वारः पुरुषाः संनि, एको निमित्तवेदी, द्वितीय रथकृत्, तृतीयः सहस्रयोधा. चतुर्थो वैद्यः तत्र निमित्तवेदी दिशं विवेद, रथकृदिव्यं रथं चकार, स्वगामिनं तं रथमारुह्य सहस्रयोधी, वैद्यथ विद्याधरपुरे गती, सहस्त्रयोधी तु तं खेटं हतवान् हन्यमानेन | खेटेन कन्या शिरश्छिन्नं, तदैव तेन वैद्येन शिर औषधेन संयोजितं राजा पश्चादागतेभ्य एभ्यतु सुतां ददौ, कन्या प्राहैषुमध्याद्यो मया सह चिताप्रवेशं करिष्यति तमहं वरिष्यामिति प्रोच्य मा कन्या सुरंगद्वारि रचितायां चितायां प्रविष्टा, यस्तया सह तत्र प्रविष्टः स तां कन्यामूढवान् दामी प्राह हे स्वामिनि! चतुर्षु मध्ये कोऽत्र प्रविष्टः ? राज्ञी प्राहाथ रतिश्रमार्त्ताया में निद्रा समायातीत्युक्त्वा सुप्ता, द्वितीयवासररात्रौ पुनर्दासीपृष्टा राशी प्राह निमि तवेदी इयं न मरिष्यतीति मत्वा चितां प्रविष्टस्तामूढवानिति परमार्थः इत्यष्टमी कथा. बीबीजे दिवसे रोजनी पेठे राजा मृता पछी दासीना पूछवाथी राणी बोली के कोई एक राजानी कुंबरीने कोइ आकाशचारी उपाडी गयो. आ राजा पांसे चार पुरुषो हता, एक निमित्त वेदी-नेत्रस्फुरणादि उपरथी शुभ अशुभ परिणाम जाणनारो, बीजो रथकार (सुतार), त्रीजो सहस्र योधी अने चोथो वैद्य; तेमां निमित्त वेदीये बतान्युं के 'आ दिशामां गइ छे' रथकारे आकाश गामी For Private and Personal Use Only भाषांतर अध्ययन ९ ॥५५७॥
SR No.020855
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorLakshmivallabh Gani
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1935
Total Pages290
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size15 MB
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